Saturday, October 9, 2010

दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी पूजा

शारदीय नवरात्रि में शक्ति पूजा का महत्व है। शक्ति के अलग-अलग रुपों में महालक्ष्मी की धन-वैभव, महासरस्वती की ज्ञान और विद्या और महादुर्गा की बल और शक्ति प्राप्ति के लिए उपासना का महत्व है। दुनिया में ताकत का पैमाना धन भी होता है।
इस बार नवरात्रि का आरंभ शुक्रवार से हो रहा है। इस दिन देवी की पूजा महत्व है। शुक्रवार के दिन विशेष रुप से महालक्ष्मी पूजा बहुत ही धन-वैभव देने वाली और दरिद्रता का अंत करने वाली मानी जाती है। पुराणों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृद्धि देने वाली बताया गया है।
नवरात्रि में देवी पूजा के विशेष काल में हर भक्त देवी के अनेक रुपों की उपासना के अलावा महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण अधिक समय न दे पाएं उनके लिए यहां बताई जा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की पूजा की सरल विधि। इस विधि से लक्ष्मी पूजा नवरात्रि के नौ रातों के अलावा हर शुक्रवार को कर धन की कामना पूरी कर सकते हैं -
- आलस्य छोड़कर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती है।
- घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है।
- इस कलश में एक सिक्का, फूल, अक्षत यानि चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।
- कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं।
- चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं।
- पूजा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाहिए।
- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
- इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।
- इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।
- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।
- आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें।
- अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।
- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास पूरी नवरात्रि या हर शुक्रवार को दीप जलाएं।


विशेष रुप से नवरात्रि में महालक्ष्मी की ऐसी पूजा परिवार में जरुर सुख-संपन्नता लाती है।

लक्ष्मी मिलती है परिश्रम और पुरुषार्थ से

हर कोई लक्ष्मी (अर्थ) की चाह रखता है लेकिन लक्ष्मी उसी का वरण करती है जो परिश्रमी के साथ ही पुरुषार्थी भी हो। इस तथ्य के पीछे एक सुंदर कथा है-दैत्यों व देवताओं ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले। उनमें लक्ष्मी भी थीं। जैसे ही लक्ष्मी समुद्र में से निकली सभी देवताओं ने उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे। सबसे पहले लक्ष्मी ने निगाह डाली तो साधु-संत बैठे हुए थे। वो खड़े हुए और बोले - हमारे पास आ जाओ। लक्ष्मी बोलीं- तुम हो तो भले लोग लेकिन तुमको सात्विक अहंकार होता है कि हम दुनिया से थोड़े ऊपर उठे हैं, भगवान के अधिक निकट हैं तो तुम्हारे पास तो नहीं आऊंगी। अहंकारी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। देवता बोले- इंद्र के नेतृत्व में हमारी हो जाओ। लक्ष्मी ने कहा- तुम्हारी तो नहीं होऊंगी। तुम देवता बनते हो पुण्य से और पुण्य से कभी लक्ष्मी नहीं मिला करती। लक्ष्मी की एक ही पसंद है पुरुषार्थ और परिश्रम। फिर लक्ष्मी ने देखा एक ऐसा है जो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा है बाकी सब लाइन लगाकर खड़े हैं तो उनके पास गई। लक्ष्मी ने जाकर देखा तो भगवान विष्णु लेटे हुए थे । लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है? वह बोलीं मैं आपको वरना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता है तो परिश्रमी भी हैं व पुरूषार्थी भी। इसलिए कहा गया है कि लक्ष्मी अहंकारी के पास नहीं जाती तथा सिर्फ पुण्य कर्मों से भी नहीं मिलती। लक्ष्मी का वरण करना है तो परिश्रमी के साथ पुरूषार्थी भी बनो, तो ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत?

एकांत का मतलब होता है-अकेलापन। एकांत शब्द का अर्थ ही है एक के बाद अंत अर्थात अकेला। जब भी मनुष्य ने जीवन के अनसुलझे प्रश्रों के उत्तर ढ़ूंढऩे का प्रयास किया है उसने एंकात की तलाश की है।
क्या एकांत हमारे जीवन में इतनी बड़ी भूमिका निभाता है? क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत में रहना?
जब भी हम अकेले होते हैं तब हमारी गति बाह्य न होकर आंतरिक होती है। एकांत के क्षणों में मैं से सामना अपने आप हो जाता है।वैसे भी सभी सभ्यताएं इस बात पर जोर देती हैं कि कैसे भी मैं से साक्षात्कार हो जाए। आत्म-साक्षात्कार के लिए एकांत सहायक तत्व है इसीलिए अंतर्मुखी व्यक्ति हमेशा एकांत की तलाश में रहता है।अनगिनत महान आत्माओं ने एकांत में ही अपने आप को पहचान पाया है। यह तो सर्वविदित है कि भीड़ हमेशा ही निर्माण की भूमिका निभाने की बजाय विनाश ज्यादा करती है, इसलिए भीड़ को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। एकांत के कारण फैसले लेना काफी सुविधाजनक होता है।एकांत जीवन के लिए बहुत आवश्यक होता है। इससे हमें अपने अंर्तमन में झांकने का मौका मिलता है और हम अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकते हैं।

Sunday, October 3, 2010

ऐसे पैदा करें खुद में जादुई आकर्षण

क्या आप इसलिए परेशान हैं क्योंकि आपका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है। तो आप की समस्या का आसान निदान हमारे पास है। क्या आप जानते हैं सम्मोहन सिर्फ दूसरों पर ही नहीं आप अपने आप पर भी चला सकते हैं। आप खुद को सम्मोहित कर के अपने शरीर में ऐसी चुम्बकीय शक्ति पैदा कर सकते है। दूसरों को सम्मोहित करने के लिए यह आवश्यक है कि उसे आप पर विश्वास हो। वैसे ही खुद को सम्मोहित करने के लिए सबसे ज्यादा जरुरत है आत्मविश्वास की। जिस तरह योग प्राणायाम से व्यक्ति सम्मोहनकर्ता बन सकता है। वैसे ही अपनी अंदर की चेतना को ध्यान व त्राटक के माध्यम से आप भी अपने शरीर में चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर सकते हैं। विधि-:इसके लिए आपको त्राटक जो ध्यान की एक विधा की प्रतिदिन प्रेक्टिस कि जरुरत होती हैं।इसमें पलंग पर आराम से लेटकर अपने मन और मस्तिष्क को पूरी तरह शिथिल कर आंतरिक मन को क्रियाशील बनाकर उसे पूरी तरह एकाग्र बनाए। पूरी कोशिश करें कि आप शुरुआत में किसी अन्य के बारे में ना सोचे ,जो भी सोचे अपने बारे में ही सोचे और सकारात्मक सोचे। धीरे-धीरे यह कोशिश करें कि मन में कोई विचार ना आए और अपने ध्यान को आज्ञा चक्र जो कि दोनो आइब्रोज के बीच होता है पर अपना पूरा ध्यान लगाने का प्रयास करें व श्वास पर ध्यान केन्द्रित करे। सुबह बिस्तर से उठने से पहले भी पांच मिनट आज्ञा चक्र को देखें।-दिन में या रात में आप कहीं भी हो हर आधे घंटे मे अपनी सोच का आत्म अवलोकन करें और ध्यान रखे की किसी भी तरह के नकारात्मक विचार मन में ना आए।अपने आप में जादुई चुंबकीय आकर्षण पैदा किया जा सकता है।

जानिए क्या है चमत्कारी जड़ का जादू


क्या आप जानते हैं किसी ऐसी जड़ के बारे में जिसका असर जादुई है ये जड़ कई ऐसे चमत्कार कर सकती है जिसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकते।यह ऐसी जड़ है जो जीवन की हर समस्या को जड़ से मिटा सकती हैं ऐसी शक्ति है इस जड़ में जो किसी साधारण व्यक्ति में भी जादुई आकर्षण पैदा कर सकती है। क्या आप जानते हैं किसी ऐसी जड़ के बारे में।हम बात कर रहे है एक ऐसी जड़ की जो मनुष्य के अंग के तरह दिखाई देती है। इसका आकार दो जुड़े हुए हाथों के समान है। इसे हथ्था जोड़ी कहा जाता है। वास्तव में यह एक दूर्लभ पौधे की जड़ है जो बिरवाह नाम के पौधे से प्राप्त होती है। यह पौधा मध्य प्रदेश के अमरकंटक क्षेत्र में पाया जाता है। यह एक चमत्कारी जड़ है जिसे आप सिर्फ अपने साथ रखने मात्र से अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन महसूस करेंगे। इस जड़ को मां चामुण्डा का बहुत प्रिय माना जाता है क्योंकि यह मानव शरीर के एक अंग के समान दिखाई देती है। तंत्र शास्त्र के अनुसार इस जड़ की पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करके इसे अपने साथ रखने से शत्रुओं पर विजय के साथ ही सभी तरह के बीमारियों व बुरी नजर से बचाती है। इस जड़ में यह अद्भुत क्षमता है, यह कि इसे जब सरसों के तेल में रखा जाता है और यह जड़ हजारों लीटर तेल पीकर उसी वजन की बनी रहती है। इसे सिन्दूर के साथ कपड़े में लपेटकर रखा जाता है। उसके बाद यह जड़ अपना चमत्कारिक असर दिखाना शुरु कर देते हैं।

धन समृद्धि का वशीकरण करें ऐसे..

इस अर्थ प्रधान युग में धनहीन यानि की गरीब इंसान की बेबसी पर शायद पत्थर भी पसीज जाते होगें, पर प्रारब्ध है कि टस से मस नहीं होता। धनहीन इंसान की हालत उस सांप के जैसी हो जाती है, जो अपनी मणी को खोकर या गंवाकर दीन-हीन निस्तज दशा में जैसे-तैसे जिंदगी की गाड़ी को घसीटता है। इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाने का प्रबल पुरुषार्थ करने के साथ ही बचत, सादगी तो मनुष्य को करना ही चाहिये, साथ ही उस गुप्त विज्ञान को भी आजमाना चाहिये जो कि भाल पर लिखे कुअंक मिटा सके।यह एक ऐसा मंत्र है जो यदि नियम पूर्वक संपन्न हुआ तो कभी नहीं चूकता। वह मंत्र और उसके नियम इस प्रकार हैं-
मंत्र- ऊँ नमो पद्मावती पद्मनये लक्ष्मी दायिनी वांक्षाभूत प्रेत विंध्यवासिनी सर्व शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि-सिद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा। ऊँ क्लीं श्रीं पद्मावत्यै नम:।
नियम-
१। मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही संपन्न होना चाहिये।
२। साधना में प्रयुक्त सभी वस्तुएं लाल रंग की हों।
३। साधना २१ दिनों तक लगातार बिना गेप के चालू रहे।
४। २१ दिनों तक घर के सभी सदस्य सूर्योदय से पूर्व उठकर पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें।
५. अपने कार्यस्थल पर हमैशा के समय से २१ मिनिट पहले पहुंचकर तांबे के श्रीयंत्र पर लाल फूल अर्पित करें।

लक्ष्मी का स्थाई निवास होगा घर में

लक्ष्मी को चंचला माना गया है यानि कि वह एक जगह टिकती नहीं है। लेकिन दुनिया की हर समस्या की तरह ही इसका भी हल कुछ सुजान जानकारों ने खोज ही निकाला है।
तो आइये जाने उन उपायों को-
१। श्रीयंत्र को पूजा स्थान में रखकर उसकी पूजा करें। फिर उसे लाल वस्त्र में लपेटकर अपनी तिजोरी या धन के स्थान पर रख दें।
२। प्रत्येक शनिवार को किसी काले कुत्ते को रोटी खिलाएं।
३। गाय के शुद्ध घी की व्यवस्था करें फिर नो बत्तियों वाला एक दीपक बनाएं।
४। तांबे के सिक्के को लाल रंग के रिबन में बांधकर घर के मुख्य दरवाजे की चोखट से बांध देवें।
५। प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष की जड़ों में रखें।