Saturday, October 9, 2010

दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी पूजा

शारदीय नवरात्रि में शक्ति पूजा का महत्व है। शक्ति के अलग-अलग रुपों में महालक्ष्मी की धन-वैभव, महासरस्वती की ज्ञान और विद्या और महादुर्गा की बल और शक्ति प्राप्ति के लिए उपासना का महत्व है। दुनिया में ताकत का पैमाना धन भी होता है।
इस बार नवरात्रि का आरंभ शुक्रवार से हो रहा है। इस दिन देवी की पूजा महत्व है। शुक्रवार के दिन विशेष रुप से महालक्ष्मी पूजा बहुत ही धन-वैभव देने वाली और दरिद्रता का अंत करने वाली मानी जाती है। पुराणों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृद्धि देने वाली बताया गया है।
नवरात्रि में देवी पूजा के विशेष काल में हर भक्त देवी के अनेक रुपों की उपासना के अलावा महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण अधिक समय न दे पाएं उनके लिए यहां बताई जा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की पूजा की सरल विधि। इस विधि से लक्ष्मी पूजा नवरात्रि के नौ रातों के अलावा हर शुक्रवार को कर धन की कामना पूरी कर सकते हैं -
- आलस्य छोड़कर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती है।
- घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है।
- इस कलश में एक सिक्का, फूल, अक्षत यानि चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।
- कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं।
- चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं।
- पूजा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाहिए।
- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
- इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।
- इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।
- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।
- आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें।
- अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।
- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास पूरी नवरात्रि या हर शुक्रवार को दीप जलाएं।


विशेष रुप से नवरात्रि में महालक्ष्मी की ऐसी पूजा परिवार में जरुर सुख-संपन्नता लाती है।

लक्ष्मी मिलती है परिश्रम और पुरुषार्थ से

हर कोई लक्ष्मी (अर्थ) की चाह रखता है लेकिन लक्ष्मी उसी का वरण करती है जो परिश्रमी के साथ ही पुरुषार्थी भी हो। इस तथ्य के पीछे एक सुंदर कथा है-दैत्यों व देवताओं ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले। उनमें लक्ष्मी भी थीं। जैसे ही लक्ष्मी समुद्र में से निकली सभी देवताओं ने उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे। सबसे पहले लक्ष्मी ने निगाह डाली तो साधु-संत बैठे हुए थे। वो खड़े हुए और बोले - हमारे पास आ जाओ। लक्ष्मी बोलीं- तुम हो तो भले लोग लेकिन तुमको सात्विक अहंकार होता है कि हम दुनिया से थोड़े ऊपर उठे हैं, भगवान के अधिक निकट हैं तो तुम्हारे पास तो नहीं आऊंगी। अहंकारी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। देवता बोले- इंद्र के नेतृत्व में हमारी हो जाओ। लक्ष्मी ने कहा- तुम्हारी तो नहीं होऊंगी। तुम देवता बनते हो पुण्य से और पुण्य से कभी लक्ष्मी नहीं मिला करती। लक्ष्मी की एक ही पसंद है पुरुषार्थ और परिश्रम। फिर लक्ष्मी ने देखा एक ऐसा है जो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा है बाकी सब लाइन लगाकर खड़े हैं तो उनके पास गई। लक्ष्मी ने जाकर देखा तो भगवान विष्णु लेटे हुए थे । लक्ष्मी ने पैर पकड़े, चरण हिलाए। विष्णु बोले क्या बात है? वह बोलीं मैं आपको वरना चाहती हूं। विष्णु ने कहा-स्वागत है। लक्ष्मी जानती थीं कि यही मेरी रक्षा करेंगे। तब से लक्ष्मी-नारायण एक हो गए। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनकर्ता है तो परिश्रमी भी हैं व पुरूषार्थी भी। इसलिए कहा गया है कि लक्ष्मी अहंकारी के पास नहीं जाती तथा सिर्फ पुण्य कर्मों से भी नहीं मिलती। लक्ष्मी का वरण करना है तो परिश्रमी के साथ पुरूषार्थी भी बनो, तो ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत?

एकांत का मतलब होता है-अकेलापन। एकांत शब्द का अर्थ ही है एक के बाद अंत अर्थात अकेला। जब भी मनुष्य ने जीवन के अनसुलझे प्रश्रों के उत्तर ढ़ूंढऩे का प्रयास किया है उसने एंकात की तलाश की है।
क्या एकांत हमारे जीवन में इतनी बड़ी भूमिका निभाता है? क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत में रहना?
जब भी हम अकेले होते हैं तब हमारी गति बाह्य न होकर आंतरिक होती है। एकांत के क्षणों में मैं से सामना अपने आप हो जाता है।वैसे भी सभी सभ्यताएं इस बात पर जोर देती हैं कि कैसे भी मैं से साक्षात्कार हो जाए। आत्म-साक्षात्कार के लिए एकांत सहायक तत्व है इसीलिए अंतर्मुखी व्यक्ति हमेशा एकांत की तलाश में रहता है।अनगिनत महान आत्माओं ने एकांत में ही अपने आप को पहचान पाया है। यह तो सर्वविदित है कि भीड़ हमेशा ही निर्माण की भूमिका निभाने की बजाय विनाश ज्यादा करती है, इसलिए भीड़ को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। एकांत के कारण फैसले लेना काफी सुविधाजनक होता है।एकांत जीवन के लिए बहुत आवश्यक होता है। इससे हमें अपने अंर्तमन में झांकने का मौका मिलता है और हम अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकते हैं।

Sunday, October 3, 2010

ऐसे पैदा करें खुद में जादुई आकर्षण

क्या आप इसलिए परेशान हैं क्योंकि आपका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है। तो आप की समस्या का आसान निदान हमारे पास है। क्या आप जानते हैं सम्मोहन सिर्फ दूसरों पर ही नहीं आप अपने आप पर भी चला सकते हैं। आप खुद को सम्मोहित कर के अपने शरीर में ऐसी चुम्बकीय शक्ति पैदा कर सकते है। दूसरों को सम्मोहित करने के लिए यह आवश्यक है कि उसे आप पर विश्वास हो। वैसे ही खुद को सम्मोहित करने के लिए सबसे ज्यादा जरुरत है आत्मविश्वास की। जिस तरह योग प्राणायाम से व्यक्ति सम्मोहनकर्ता बन सकता है। वैसे ही अपनी अंदर की चेतना को ध्यान व त्राटक के माध्यम से आप भी अपने शरीर में चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर सकते हैं। विधि-:इसके लिए आपको त्राटक जो ध्यान की एक विधा की प्रतिदिन प्रेक्टिस कि जरुरत होती हैं।इसमें पलंग पर आराम से लेटकर अपने मन और मस्तिष्क को पूरी तरह शिथिल कर आंतरिक मन को क्रियाशील बनाकर उसे पूरी तरह एकाग्र बनाए। पूरी कोशिश करें कि आप शुरुआत में किसी अन्य के बारे में ना सोचे ,जो भी सोचे अपने बारे में ही सोचे और सकारात्मक सोचे। धीरे-धीरे यह कोशिश करें कि मन में कोई विचार ना आए और अपने ध्यान को आज्ञा चक्र जो कि दोनो आइब्रोज के बीच होता है पर अपना पूरा ध्यान लगाने का प्रयास करें व श्वास पर ध्यान केन्द्रित करे। सुबह बिस्तर से उठने से पहले भी पांच मिनट आज्ञा चक्र को देखें।-दिन में या रात में आप कहीं भी हो हर आधे घंटे मे अपनी सोच का आत्म अवलोकन करें और ध्यान रखे की किसी भी तरह के नकारात्मक विचार मन में ना आए।अपने आप में जादुई चुंबकीय आकर्षण पैदा किया जा सकता है।

जानिए क्या है चमत्कारी जड़ का जादू


क्या आप जानते हैं किसी ऐसी जड़ के बारे में जिसका असर जादुई है ये जड़ कई ऐसे चमत्कार कर सकती है जिसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकते।यह ऐसी जड़ है जो जीवन की हर समस्या को जड़ से मिटा सकती हैं ऐसी शक्ति है इस जड़ में जो किसी साधारण व्यक्ति में भी जादुई आकर्षण पैदा कर सकती है। क्या आप जानते हैं किसी ऐसी जड़ के बारे में।हम बात कर रहे है एक ऐसी जड़ की जो मनुष्य के अंग के तरह दिखाई देती है। इसका आकार दो जुड़े हुए हाथों के समान है। इसे हथ्था जोड़ी कहा जाता है। वास्तव में यह एक दूर्लभ पौधे की जड़ है जो बिरवाह नाम के पौधे से प्राप्त होती है। यह पौधा मध्य प्रदेश के अमरकंटक क्षेत्र में पाया जाता है। यह एक चमत्कारी जड़ है जिसे आप सिर्फ अपने साथ रखने मात्र से अपने जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन महसूस करेंगे। इस जड़ को मां चामुण्डा का बहुत प्रिय माना जाता है क्योंकि यह मानव शरीर के एक अंग के समान दिखाई देती है। तंत्र शास्त्र के अनुसार इस जड़ की पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करके इसे अपने साथ रखने से शत्रुओं पर विजय के साथ ही सभी तरह के बीमारियों व बुरी नजर से बचाती है। इस जड़ में यह अद्भुत क्षमता है, यह कि इसे जब सरसों के तेल में रखा जाता है और यह जड़ हजारों लीटर तेल पीकर उसी वजन की बनी रहती है। इसे सिन्दूर के साथ कपड़े में लपेटकर रखा जाता है। उसके बाद यह जड़ अपना चमत्कारिक असर दिखाना शुरु कर देते हैं।

धन समृद्धि का वशीकरण करें ऐसे..

इस अर्थ प्रधान युग में धनहीन यानि की गरीब इंसान की बेबसी पर शायद पत्थर भी पसीज जाते होगें, पर प्रारब्ध है कि टस से मस नहीं होता। धनहीन इंसान की हालत उस सांप के जैसी हो जाती है, जो अपनी मणी को खोकर या गंवाकर दीन-हीन निस्तज दशा में जैसे-तैसे जिंदगी की गाड़ी को घसीटता है। इस नारकीय जीवन से छुटकारा पाने का प्रबल पुरुषार्थ करने के साथ ही बचत, सादगी तो मनुष्य को करना ही चाहिये, साथ ही उस गुप्त विज्ञान को भी आजमाना चाहिये जो कि भाल पर लिखे कुअंक मिटा सके।यह एक ऐसा मंत्र है जो यदि नियम पूर्वक संपन्न हुआ तो कभी नहीं चूकता। वह मंत्र और उसके नियम इस प्रकार हैं-
मंत्र- ऊँ नमो पद्मावती पद्मनये लक्ष्मी दायिनी वांक्षाभूत प्रेत विंध्यवासिनी सर्व शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि-सिद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा। ऊँ क्लीं श्रीं पद्मावत्यै नम:।
नियम-
१। मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही संपन्न होना चाहिये।
२। साधना में प्रयुक्त सभी वस्तुएं लाल रंग की हों।
३। साधना २१ दिनों तक लगातार बिना गेप के चालू रहे।
४। २१ दिनों तक घर के सभी सदस्य सूर्योदय से पूर्व उठकर पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें।
५. अपने कार्यस्थल पर हमैशा के समय से २१ मिनिट पहले पहुंचकर तांबे के श्रीयंत्र पर लाल फूल अर्पित करें।

लक्ष्मी का स्थाई निवास होगा घर में

लक्ष्मी को चंचला माना गया है यानि कि वह एक जगह टिकती नहीं है। लेकिन दुनिया की हर समस्या की तरह ही इसका भी हल कुछ सुजान जानकारों ने खोज ही निकाला है।
तो आइये जाने उन उपायों को-
१। श्रीयंत्र को पूजा स्थान में रखकर उसकी पूजा करें। फिर उसे लाल वस्त्र में लपेटकर अपनी तिजोरी या धन के स्थान पर रख दें।
२। प्रत्येक शनिवार को किसी काले कुत्ते को रोटी खिलाएं।
३। गाय के शुद्ध घी की व्यवस्था करें फिर नो बत्तियों वाला एक दीपक बनाएं।
४। तांबे के सिक्के को लाल रंग के रिबन में बांधकर घर के मुख्य दरवाजे की चोखट से बांध देवें।
५। प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष की जड़ों में रखें।

कैसे निकले कर्ज के जंजाल से

कर्ज एक ऐसा दलदल है, जिसमें एक बार फंसने पर व्यक्ति उसमें धंसता ही चला जाता है। उससे उबरने का और कोई रास्ता नजर नहीं आता। वर्तमान समय में हर वस्तु के लिए कर्ज मिलना आसान हो गया है। अत: व्यक्ति फैशन के दौर में दिखावे के लिए कर्ज के जाल में उलझ जाता है। फिर उसको कोई उपाय नहीं सूझता और वह गलत कदम उठा लेता है।ज्योतिष शास्त्र में षष्ठ, अष्टम, द्वादश स्थान एवं मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। मंगल के कमजोर होने, पापग्रह से युक्त होने, अष्टम, द्वादश, षष्ठ स्थान पर नीच या अस्त स्थिति में होने पर जातक सदैव ऋणी बना रहता है। ऐसे में यदि उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़े तो कर्ज तो होता है पर वह बड़ी मुश्किल से चुकता होता है। शास्त्रों में मंगलवार और बुधवार को कर्ज के लेन-देन के लिए निषेध किया है। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवन पर्यंत ऋण नहीं चुका पाता तथा उसकी संतानें भी कर्जों में डूबी रहती हैं।
कर्ज निवारण के उपाय:
- शनिवार को ऋणमुक्तेश्वर महादेव का पूजन करें।
- मंगल की भातपूजा, दान, होम और जप करें।
- मंगल एवं बुधवार को कर्ज का लेन-देन न करें।
- लाल, सफेद वस्त्रों का अधिकतम प्रयोग करें।

लक्ष्मी कृपा जीवन में पूर्णता के लिये

इंसान जिंदगी में पूर्णता पाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। मेहनत, लगन एवं ईश्वर आराधना जो भी उसके बस में है, वह हर वो काम करता है। लेकिन कई बार अकाट्य प्रारब्ध दुर्भाग्य के बादल इतनी बेदर्दी से बरसते हैं कि उसकी खून-पसीने से खड़ी की गई फसल मिनिटों में चौपट हो जाती है। ऐसे में इंसान कई बार निराशा के अबूझ भंवर में फंस जाता है। किंतु निराशा किसी समस्या का हल नहीं है। इससे तो वह अकर्मण्यता का शिकार हो सकता है। जिंदगी की पहेली को सुलझाने में सक्षम किसी अनुभवी ही बड़ी गहरी बात कही है कि दुनिया की हर समस्या में ही उसके सुनिश्चित समाधान के बीज समाहित रहते हैं।ऐसे ही अनुभवी मानस मर्मज्ञों ने कुछ दुर्लभ और नायाब उपाए सुझाएं है जो घोर दरिद्रता को सर्वथा उलटकर स्थाई-सुख समृद्धि में बदल देते हैं। तो आओ देखें-
शकु्रवार की रात को कांसे या पीतल की थाली में महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। थाली के चापे और गेहूं के आटे के चार दीपक जलाकर रखें। अब सफेद धोती पहनकर उत्तर की ओर मुख करके बैठें और निम्न मंत्र का 51 बार जप करें-
मंत्र: ऊँ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं, ह्रीं ह्रीं फट्।
1। मंत्र जप की रात वहीं जमीन पर सोएं।
2। अगले 51 दिनों तक सूर्योदय से पूर्व उठकर, उस महालक्ष्मी यंत्र को प्रणाम कर, सूर्य को जल चढ़ाएं।
३। इन 51 दिनों में सूर्योदय पूर्व ही उठें अथवा साधना असफल हो जाएगी।
4। प्रतिदिन सुबह-शाम तुलसी के पौधे में दीपक या अगरबत्ती लगाएं।
5। घर का कौना-कौना साफ रखें। मकड़ी जाला बिल्कुल न बनने दें।
6। घर में क्रोध, विवाद और अशांति बिल्कुल न होने दें।
7। घर के सभी सदस्य साफ-सुथरे कपड़े धारण करें।
यदि सारे नियमों का पालन हुआ तो 52 वें दिन से घर में लक्ष्मी प्रवेश को कोई टाल नहीं सकता। 52 वें दिन से ही लक्ष्मी कृपा के स्पष्ट संकेत मिलने लगेंगे।

वो दुनियां का सबसे अनमोल खजाना था

आपने कई खजानों के बारे में सुना होगा। कहीं से सोने-चांदी के सिक्के निकले, कहीं बहुमूल्य जवाहरात का भंडार ही उफन पड़ा तो कहीं हीरे-मोतियों का अपार कोश ही हाथ लग गया। किन्तु एक खजाना ऐसा भी निकला था जिसके सामने दुनिया के सारे खजाने फीके पड़ जाते हैं। हिन्दू धर्म ग्रथों में उस अनमोल खजाने की घटना को समुद्र मंथन के नाम से जाना जाता हैज।
आइये जाने उस खजाने में से क्या-क्या निकला था-

१- हलाहल विष: इसे भगवान शिव ने धारण किया।

२- कामधेनु गाय: ऋषिमुनियों को यज्ञादि कर्मों के लिए दी गई।

३- कौस्तुभ मणी : भगवान विष्णु ने धारण की।

४- अप्सरा रम्भा : इंद्र देव ने प्राप्त की।

५- लक्ष्मी: लक्ष्मी ने स्वयं ही भगवान विष्णु का वरण किया।

६- वारुणी कन्या (हाथ में सुरा लिए हुए) : असुरों ने ग्रहण की।

७- ऐरावत हाथी : इंद्र को प्राप्त हुआ।

८- कल्पवृक्ष : इंद्र ने प्राप्त किया।

९- पंचजन्य शंख :

१०- चंद्रमा :

११- सारंग धनुष :

१२- उच्चेश्रवा घोड़ा : असुर राजा बली को प्राप्त हुआ।

१३- धनवंतरि : अमृत कलश लेकर आए।

१४- अमृत : बुद्धिबल का प्रयोग कर देवताओं ने ग्रहण किया।

वो दुनियां का सबसे अनमोल खजाना था

आपने कई खजानों के बारे में सुना होगा। कहीं से सोने-चांदी के सिक्के निकले, कहीं बहुमूल्य जवाहरात का भंडार ही उफन पड़ा तो कहीं हीरे-मोतियों का अपार कोश ही हाथ लग गया। किन्तु एक खजाना ऐसा भी निकला था जिसके सामने दुनिया के सारे खजाने फीके पड़ जाते हैं। हिन्दू धर्म ग्रथों में उस अनमोल खजाने की घटना को समुद्र मंथन के नाम से जाना जाता हैज।
आइये जाने उस खजाने में से क्या-क्या निकला था-

१- हलाहल विष: इसे भगवान शिव ने धारण किया।

२- कामधेनु गाय: ऋषिमुनियों को यज्ञादि कर्मों के लिए दी गई।

३- कौस्तुभ मणी : भगवान विष्णु ने धारण की।

४- अप्सरा रम्भा : इंद्र देव ने प्राप्त की।

५- लक्ष्मी: लक्ष्मी ने स्वयं ही भगवान विष्णु का वरण किया।

६- वारुणी कन्या (हाथ में सुरा लिए हुए) : असुरों ने ग्रहण की।

७- ऐरावत हाथी : इंद्र को प्राप्त हुआ।

८- कल्पवृक्ष : इंद्र ने प्राप्त किया।

९- पंचजन्य शंख :

१०- चंद्रमा :

११- सारंग धनुष :

१२- उच्चेश्रवा घोड़ा : असुर राजा बली को प्राप्त हुआ।

१३- धनवंतरि : अमृत कलश लेकर आए।

१४- अमृत : बुद्धिबल का प्रयोग कर देवताओं ने ग्रहण किया।

भरोसा करो लेकिन...

किसी भी व्यक्ति चाहे वो कैसा भी हो उसे सुधरने को मौका देना और उसे क्षमा करना ठीक है लेकिन किसी भी दुष्ट व्यक्ति पर आंख बंद करके विश्वास आपको दुख पहुचाने के साथ ही परेशानी में डाल सकता है। धोखे से बचने के लिए जरुरी है हमेशा भरोसा करें लेकिन सतर्कता के साथ क्योंकि किसी भी व्यक्ति की जो मूल प्रवृत्ति होती है वह उसे चाहकर भी नहीं छोड़ पाता। इसमें गलती उस व्यक्ति की नहीं, आपकी है। एक व्यक्ति हमेशा अपने कामों से लोगों को परेशान करता था। लोग उससे बहुत दुखी थे। वह लोगों को परेशान करके बहुत खुश होता था। एक दिन वह बीमार हो गया। अचानक उसके व्यवहार में बदलाव आया। वह सब से ठीक से पेश आने लगा। उसके व्यवहार से सभी को आश्चर्य होने लगा लेकिन उसके रिश्तेदारों और लोगों को लगा कि शायद वह सुधर गया है। इसलिए सभी का व्यवहार धीरे-धीरे उसके प्रति बदलने लगा। एक दिन उसकी तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ गई तो उसने अपनी कालोनी वालों और रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और कहा कि अगर आप सभी लोग चाहते हैं कि मरने के बाद मेरी आत्मा को शांति मिले तो आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि आप मेरी अंतिम इच्छा की पूर्ति करेंगें। लोंगो ने कहा ठीक है बताओ क्या है तुम्हारी अंतिम इच्छा?

उसने कहा मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरे सर में खूंटा ठोक दिया जाए । मैं चाहता हूं मुझे अपने जिन्दगी भर के गुनाहों कि सजा मिल जाए। लोगों ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो था कि मानने को तैयार ही नहीं। उसी दिन उसकी मौत हो गई। उसके आसपास के लोग यही चाहते थे कि बेचारे की आत्मा को किसी तरह शांति मिल जाए इसलिए उन लोगों ने उसके सिर में खूंटा ठोंक दिया। अब उसके शव को शमशान ले जाने की तैयारी होने लगी। इतने मैं अचानक वहां पुलिस आई और उन लोगों से कहा कि आप लाश को नहीं ले जा सकते। सभी लोग स्तब्ध थे। उनमें से एक ने पूछा क्यों तो पुलिस ने कहा क्योंकि ये जो आदमी मरा है इसने चार दिन पहले ही रिपोर्ट लिखवाई थी कि शायद मेरी ही जान पहचान के लोग मेरे हत्या की साजिश कर रहे हैंऔर यदि मेरी अचानक मौत होती है तो इसका जिम्मेदार मेरे सभी जान पहचान वालों को माना जाए। वे सभी लोग सदमें में थे कि उस दुष्ट ने मरते हुए भी अपनी दुष्टता नहीं छोड़ी। आखिर गलती तो उन्ही की थी क्योंकि उन्होंने उस पर भरोसा किया।

चमत्कारी असर है ऊँ की ध्वनि में

चिकित्साशास्त्री,शरीर विज्ञानी,ध्वनि विज्ञानी और अन्य भौतिक विज्ञानी ओम को लेकर आज बड़े आश्चर्यचकित हैं। इंसानी जिंदगी पर किसी शब्द का इतना अधिक प्रभाव सभी के आश्चर्य का विषय है। एक तरफ ध्वनिप्रदूषण बड़ी भारी समस्या बन चुका है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी ध्वनि है जो हर तरह के प्रदूषण को दूर करती है। वो ध्वनि है ओम के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि। जरा देखें ऊँ के उच्चारण से क्या घटित और परिवर्तित होता है:-- ऊँ की ध्वनि मानव शरीर के लिये प्रतिकुल डेसीबल की सभी ध्वनियों को वातावरण से निष्प्रभावी बना देती है।- विभिन्न ग्रहों से आनेवाली अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणें ओम उच्चारित वातारण में निष्प्रभावी हो जाती हैं।- ऊँ का उच्चारण करने वाले के शरीर का विद्युत प्रवाह आदर्श स्तर पर पहुंच जाता है।- इसके उच्चारण से इंसान को वाक्सिद्धि प्राप्त होती है।- अनिद्रा के साथ ही सभी मानसिक रोगों का स्थाई निवारण हो जाता है।- चित्त एवं मन शांत एवं नियंत्रित हो जाते हैं।

धन समृद्धि के पुख्ता इंतजाम होंगे इससे

पूरे साल भर बाद पुन: वही दुर्लभ मुहूर्त आ चुका है जिसका हर क्षेत्र के साधकों को उत्कंठापूर्ण इंतजार रहता है। अक्षय तृतीया का सुभ मुहूर्त है। अक्षय तृतीया की इसी गरिमा और प्रतिफल को देखते हुए इसे चार स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में शामिल किया गया है। सांसारिक जीवन की सर्वप्रमुख आवश्यकता धन संपदा ही है। इस अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति के लिये इंसान को दुर्धस पुरुषार्थ तो अवश्य ही करना चाहिये। किन्तु तरकीब भी कोई चीज होती है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। तो आइये जांची-परखी तरकीबों को आजमा कर देखें-प्रयोग विधि-
अक्षय तृतीया की रात्रि को साधक लाल लंगोट पहने। साधक का आसन भी लाल वर्णीय हो। इस आसन पर खड़े होकर निम्र मंत्र का ११ माला जप करे। इस साधना के बाद अगले ५१ दिनों तक हर हाल में सूर्योदय से पूर्व उठकर उगते हुए सूर्यदेव और पीपल के वृक्ष को जल चढाये ।

मंत्र-अघोर लक्ष्मी मम गृहे आगच्छ स्थापय तुष्टय पूर्णत्व देहि देहि फट्।
धन समृद्धि के पुख्ता इंतजाम होंगे इससे आपके घर में।

टोटकों से करें धन-समृद्धि का आकर्षण

संसार में रहकर यदि हम गृहस्थ धर्म को अपनाते हैं तो उसकी सफलता की उचित व्यवस्था होना भी आवश्यक है। इंसान सादगी और मितव्ययता से रहे यह प्रशंसनीय है। किंतु सादगी और दरिद्रता तथा मितव्ययता और कंजूसी में फर्क बना रहे यह भी जरूरी है। कई बार होता यह है कि इंसान अपनी दरिद्रता को सादगी का मुखोटा पहनाकर मन बहलाता रहता है। वहीं कुछ लोग निहायत कंजूसी बरतते हुए भी उसे मितव्ययता का नाम देकर बच निकलने का असफल प्रयास करते हंै।संसार में रहकर गृहस्थ जीवन की सफलता के लिए सुख-समृद्धि का होना निहायत ही जरूरी है। धन-समृद्धि को अर्जित करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ यानि कि ईमानदारी पूर्वक कठोर परिश्रम तो आवश्यक है ही। किंतु साथ ही कुछ जांचे-परखे और कारगर उपायों जिन्हें टोने-टोटके के रूप में जाना जाता है को भी आजमाना चाहिये। तो देखें ऐसे ही कुछ आसान किंतु प्रभावशाली टोटके को:
- धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी को प्रति एकादशी के दिन नौ बत्तियों वाला शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
- घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर तांबे के सिक्के को लाल रंग के नवीन वस्त्र में बांधने से घर में धन, समृद्धि का आगमन होता है।
- प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पीपल, तुलसी एवं सूर्य देव को जल अर्पित कर सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।- शनिवार के दिन कृष्ण वर्ण के पशुओं को रोटी खिलाएं।
- घर का कोना-कोना साफ रखें और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं।
- घर आए अतिथि, साधु या याचक को यथा संभव प्रसन्न करके ही विदा करें।
- अपनी ईमानदारी और मेहतन की कमाई का 2 प्रतिशत हिस्सा, जीव-जंतु, प्रकृति, राष्ट्र एवं समाज की भलाई में खर्च करें। यहां पर लगाया धन लाख गुना होकर शीघ्र ही लौट आता है।

धन की बारिश में भीगना है...?

आवश्यकताओं और सुविधाओं के बढऩे के साथ-साथ हम चाहे जितना पैसा कमा ले, कम ही है। धन की बढ़ती जरूरत के लिए अतिरिक्त कार्य करना होता है। फिर भी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती। ऐसे में मेहनत के साथ-साथ धन की देवी लक्ष्मी की उपासना भी जाए तो व्यक्ति सभी ऐश्वर्य और सुख-शांति प्राप्त करता है।यहां एक प्रयोग दिया जा रहा है जिसे अपनाने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं शत-प्रतिशत पूर्ण होती हैं
-प्रयोग की विधि:
- दीपावली, अक्षय तृतीया या अन्य किसी भी शुभ दिन, शुभ मुहूर्त में इस प्रयोग को करें।
- स्नानादि से निवृत्त होकर साफ और पवित्र स्थान पर आसन बिछा लें और महालक्ष्मी का चित्र को अपने सामने स्थापित करें।
- महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के पश्चात निम्न मंत्र का (11 मालाएं) जप करें:
मंत्र: ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दारिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:।।
- माला कमल के गट्टे की होनी आवश्यक है।
- इस दिन के पश्चात नित्य अपनी इच्छानुसार मंत्र का जप करें।
- 12 लाख मंत्र जप के पश्चात महालक्ष्मी सिद्ध हो जाती हैं और उपासक को अपार धन, समृद्धि, वैभव, यश, सुख और शांति प्राप्त हो जाती है।
इस प्रयोग की सफल शुरूआत के कुछ ही दिनों में व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होना शुरू हो जाती है।- प्रयोग पूरी श्रद्धा और भक्ति से करें। मन में कोई संदेह ना लाएं। यह प्रयोग अचूक है।

2 मिनिट में जानें सफल होंगे या नहीं


क्या आपकी कोई समस्या, परेशानी, दिक्कत आपको सता रही है? या आप कोई कार्य करना चाहते हैं और उसमें सफलता को लेकर संशय है, या कोई एग्जाम देना है, और आप सोच रहे हैं उसमें सफलता मिलेगी या नहीं, ऐसे हर सवाल के लिए यहां एक यंत्र दिया जा रहा है, जिसकी मदद से आपको अपने कार्य की सफलता-असफलता की ओर इशारा मिलेगा
-प्रश्न करने की विधि
- अपनी समस्या या प्रश्न सोचकर अपने आराध्य देव का नाम लेकर आंख बंद करें और अपने कम्प्यूटर के माउस कर्शर के पॉइन्ट को यंत्र के ऊपर घुमाएं और कुछ देर बार माउस रोककर देखें कि कर्शर किस अंक पर है, उसी अंक का उत्तर आपके प्रश्न का उत्तर होगा ।
1. प्रश्न उत्तम है, कार्य पूर्ण होने की पूरी संभावना है।
2. आराध्य देव की पूजा करके कार्य शुरू करें, सफलता निश्चित मिलेगी।
3. इस कार्य का परिणाम गड़बड़ हो सकता है।
4. आपने कार्य के लिए जो रास्ता चुना है, उसे बदलकर नए तरीके से कार्य करें, सफलता अवश्य मिलेगी।
5. कार्य में सफलता संभावित है। कार्य भगवान पर छोड़ दें।
6. और अधिक प्रयत्न करने की जरूरत है, सफलता निश्चित ही मिलेगी।
7. कार्य में कई परेशानियां आएंगी परंतु कार्य पूर्ण हो जाएगा।
8. कार्य कठिनाइयों से भरा है, सफलता की उम्मीद कम है।
9. इस कार्य में शत-प्रतिशत सफलता सफलता मिलेगी।

पैसा बरसता रहेगा तब तक...

शास्त्रों के अनुसार धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा से धन की वर्षा तब तक होती है जब तक कोई व्यक्ति निम्न कार्यों से दूर रहता है।
- जब कोई व्यक्ति अकर्मण्य, नास्तिक, वर्णसंकर, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर तथा गुरुजनों के दोष देखने वाला हो जाता है, तब चाहे वह कितना ही धनी क्यों न हो, जल्दी ही निर्धन हो जाता है।
- जब कोई व्यक्ति मन में दूसरा भाव रखते हैं और ऊपर कुछ और ही दिखाते हैं। उन्हें लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती।
- जब कोई स्त्री अपने घर को साफ और व्यवस्थित नहीं रखती और दूसरों की बुराई आदि करने में लिप्त रहती है। उनके घर से भी लक्ष्मी चली जाती हैं।
- जो स्त्री पति के प्रतिकूल बोलती हैं और दूसरों के घरों में घूमती-फिरती हैं। उन स्त्रियों के घर से लक्ष्मी चली जाती हैं।
- जो व्यक्ति अधार्मिक कार्यों में फंस जाता है। उसे लक्ष्मी त्याग देती है।

महालक्ष्मी की कृपा के लिए यह उपाय करें-
- प्रतिदिन किसी भी शिवलिंग पर पूरी श्रद्धा से जल चढ़ाएं।
- प्रतिदिन शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाएं।
- रोज रात के समय शिवजी के समक्ष दीपक जलाएं।
- अधार्मिक कार्यों से खूद को दूर रखें।
- पीपल पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा प्रतिदिन करें।
- महालक्ष्मी पति श्री विष्णु का पूजन करें।

स्वर्ग और नर्क क्या है?

एक बार किसी गुरु से उसके शिष्य ने पूछा मैं जानना चाहता हुं कि स्वर्ग व नरक कैसे हैं? उसे गुरु ने कहा आंखे बंद करों और देखों। शिष्य ने आंखे बंद की और शांत शुन्यता में चला गया। गुरु ने कहा अब स्वर्ग देखों और थोड़ी देर बाद कहा अब नर्क देखों। उसके थोड़ी देर बाद गुरु ने पूछा- क्या देखा? वह बोला स्वर्ग में मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा जिसकी लोग चर्चा करते हैं न ही अमृत की नदियां, न स्वर्ण भवन और न ही अप्सराएं। वहां तो कुछ भी नहीं था और नर्क में भी कुछ भी नहीं था न अग्रि की ज्वालाएं, न पीडि़तों का रूदन कुछ भी नहीं।शिष्य ने पूछा- इसका क्या कारण है? मैंने स्वर्ग देखा या नहीं देखा? गुरु हंसे और बोले- निश्चय ही तुमने स्वर्ग और नर्क देखे हैं लेकिन अमृत की नदियां, अप्सराएं, स्वर्ण भवन, पीड़ा व रूदन तुझे स्वयं वहां ले जाने होंगे। वे वहां नहीं मिलते जो हम अपने साथ ले जाते हैं वही वहां उपलब्ध हो जाता हैं। हम ही स्वर्ग हैं, हम ही नर्क । व्यक्ति जो अपने अंदर रखता है, वही अपने बाहर पाता है। भीतर स्वर्ग है तो बाहर स्वर्ग है और भीतर नर्क हो तो बाहर नर्क है। स्वयं में ही सब कुछ छुपा है।

ऐसे देगा पैसा आपके दरवाजे पर दस्तक......

क्या आप चाहते हैं कि आपके जीवन में भी कुछ ऐसा हो जाए कि हर तरफ से धन कि बारिश होने लगे लक्ष्मी आपके दरवाजे पर दस्तक दे और आपके जीवन से सारी आर्थिक परेशानियां खत्म हो जाए तो नीचे लिखे इस उपाय को अपनाकर आप भी अपने जीवन कि धन से जुड़ी सारी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
- घर के मुख्य दरवाजे पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा।
- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा।

कैसे बढ़ाएं बैंक बैलेंस?

बैंक में पैसा जमा करवाते समय हर व्यक्ति यही सोचता है कि उसके खाते में हमेशा एक बड़ा अमांउट रहे, कभी भी उसका बैंक बैलेंस जीरो न हो। जीवन में आने वाले उतार - चढ़ाव ऐसा होने नहीं देते, कभी बैंक बैलेंस बढ़ता है तो कभी घटता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका बैलेंस हमेशा बढ़ता रहे तो आप निम्न उपाय कर सकते हैं-
1- जब भी आप बैंक में पैसा जमा करवाएं तो प्रयास करें कि पश्चिम मुखी होकर ही कार्य करें ।
2- मानसिक रूप से निम्न मंत्र का जाप करें- ऊं श्रीं श्रीं श्रीं
3- यदि इससे भी लाभ नहीं हो तो शुक्रवार को तुलसी के पौधे के समक्ष गाय के घी का दीपक जलाएं व ऊपर दिए गए मंत्र का जाप करें इस उपाय से आपके खाते में धन सदैव बढ़ता रहेगा।

क्या करें अगर पैसा नहीं टिकता?

अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो है लेकिन पैसा टिकता नहीं। पैसा आता तो है पर चला जाता है, पता ही नहीं चलता। कितनी ही कोशिश करें पर घर मे बरकत नहीं रहती। यदि आप भी इसी समस्या से परेशान हैं तो नीचे लिखे उपाय को अपनाकर अपनी इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं।

- जब भी आप घर में अनाज पिसवाएं तो उसमे ग्यारह पत्ते तुलसी के साथ ही दो पत्ती केसर डाल कर, उसमें से थोड़े से अनाज को रात को निकालकर मंदिर में रखकर सुबह उस अनाज को सारे अनाज में मिलाकर पिसवा लें। इस प्रयोग से आपकी समस्या का शीघ्र ही समाधान हो जाएगा और घर में भी बरकत रहने लगेगी।

यह है सफलता का पहला सूत्र

आज हर कोई मैनेजमेंट के सूत्र जानने के पीछे भाग रहा है। तरह-तरह की किताबें और एक पूरी साहित्य शृंखला सफलता के सूत्रों पर लिखी जा चुकी है। क्या कारण है कि युवा पीढ़ी फिर भी इतनी अशांत और असफलता के भावों से घिरी है। शायद हमारे सूत्रों में ही कोई कमी रह गई है, ऐसा सोचकर हम फिर नई किताबों की ओर मुड़ जाते हैं। अध्यात्म के भी अपने कुछ सूत्र हैं जो हमें सफलता की ओर ले जाते हैं। इन सूत्रों को अगर अपना लिया जाए तो सफलता तो मिलती है लेकिन साथ में एक चीज और मिल जाती है वह है शांति।

प्रतिस्पर्धा के चलते स्वास्थ्य पर ध्यान देना लगभग भूल जाते हैं। अनियमित दिनचर्या और खानपान लगभग हर दूसरे युवा की परेशानी है। हमें सेहतमंद रहने के लिए हनुमानजी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके जीवन में झांके तो सफलता और सेहत दोनों के महत्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। लगातार सक्रिय रहते, परिश्रम करते हुए अपनी स्वयं की देह का ध्यान रखना भी एक योग है। सधी हुई सेहत सफलता के लिए जरूरी है। श्रीहनुमान सेहत के श्रेष्ठï उदाहरण हैं। हनुमानजी के स्वास्थ्य का राज रामायण के सुंदरकांड में लिखा है। सीताजी से मिलने के बाद जब उन्हें भूख लगी तो माताजी से निवेदन किया और सीताजी ने उनसे कहा

देखी बुद्घि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयॅं धरि तात मधुर फल खाहु।।

''हनुमानजी को बुद्घि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा जाओ हे तात श्री रघुनाथजी को हृदय में बसाते हुए मीठे फल खाओ और हनुमानजी ने फल खाए। इसमें संदेश यह है कि मनुष्य को फलाहारी या शाकाहारी होना चाहिए। शाकाहार शरीर को स्वस्थ्य रखता है और श्रीराम को हृदय में रखकर फल खाने का अर्थ है शुद्घ स्वच्छता से भोजन करना। शुद्घ भोजन, स्वच्छ वातावरण में अच्छे भाव से यदि किया जाए तो शरीर पर अनुकूल असर करता है और इसका परिणाम है हनुमानजी जैसी सेहत। महाभारत के समय जब पांडव अपना वनवास काट रहे थे उस समय भीम द्रौपदी के लिए फूल लाने के उद्देश्य से वन में प्रवेश कर गए। उन्हें केले का बगीचा दिखा। भीम की गर्जना सुनकर जंगल के जानवर पशु-पक्षी डरकर इधर-उधर भाग गए। इस वन में हनुमानजी भी रहते थे। वे मार्ग में विश्राम कर रहे थे। भीमसेन ने उन्हें पहचाना नहीं और उनसे उलझ गए तथा जाने के लिए मार्ग मांगने लगे। हनुमानजी ने कहा आप चाहें तो मेरी पूंछ हटाकर जा सकते हैं। भीम को अहंकार था, जैसे ही पूंछ हटाने का प्रयास किया। पूंछ टस से मस नहीं हुई। तब भीम ने पूछा आप कौन हैं और हनुमानजी का परिचय हुआ। भीम का अहंकार जाता रहा। एक युग बीत जाने पर भी हनुमानजी उतने ही स्वस्थ्य और ताकतवर थे।

जिंदगी की रफ्तार को रोकें नहीं

जीवन में सफलता के कुछ सूत्र स्थायी होते हैं, जो हर परिस्थिति में उपयोग भी लाए जा सकते हैं और हर बार उतने ही प्रभावी भी साबित होते हैं। सफलता का एक और ऐसा ही सूत्र है चलते रहना। जिंदगी में सबसे जरूरी है चलते रहना। इसके बहाव को रोकने की कोशिश नहीं करना चाहिए। कैसी भी परिस्थिति हों हमें जीवन की गति को कम नहीं करना चाहिए। मंजिल तभी मिलेगी।

जब तक जीवन में हमेशा चलते रहने का भाव नहीं आएगा, हम जिंदगी के मिजाज को समझ ही नहीं पाएंगे। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि हिन्दू धर्म का नदी से बड़ा गहरा संबंध है। सरिताओं को बड़ा सम्मान दिया गया है भारतीय संस्कृति में। नदी का अर्थ है बहाव। नदियों ने हर धर्म को ताजगी और सुगंध प्रदान की है। नदी के दुरूपयोग और सूखने का अर्थ है मनुष्य की आध्यात्मिक वृति तथा स्थिति पर प्रहार। इतिहासकारों की मानें तो सभी प्रमुख धर्मों और सभ्यताओं की गवाह नदियां रही हैं। भारत जो कभी आर्यावर्त था, ने अपनी पूरी संस्कृति और धर्म को सिंधु-गंगा-यमुना के तट पर ही प्राणवान किया। मिस्त्र की सभ्यता नील नदी के अंचल में पनपी। चीन में हांग-हो का महत्व, पूजनीय स्थिति का है। यूनानियों ने जिसे मेसोपोटामिया के नाम से पुकारा वह क्षेत्र भी जल से घिरा है। संसार के तीन प्रसिद्ध धर्म यहूदी (सियोन), ईसाई और इस्लाम इसी जल क्षेत्र की पैदाईश हैं।इसीलिए जल और धर्म के रिश्तों को अच्छी तरह समझकर सम्मान देना होगा।

नदियों ने भूखंडों को ही नहीं जोड़ा है बल्कि मनुष्यों की धार्मिक भावना को भी एक जैसी शीतलता से भिगोया है। कोई धर्म जब-जब अपने आपको पूर्ण और अलग बताता है तो नदियां कहती हैं हमारे बहाव ने बहुत कुछ एक-दूसरे धर्म में उधार पहुंचाया है, मिलाया है और आदान-प्रदान किया है।हर बदलते वक्त में हर धर्म ने अपना-अपना श्रेष्ठ एक-दूसरे को दिया और लिया है। जो भले लोग हैं उन्होंने इसका सद्पयोग किया और जो बुरे हैं उन्होंने दुरूपयोग किया। नदी और जल से सीखा जाए शुभ को देना। किसी बहती नदी के किनारे बैठ जल पर दृष्टि गड़ा दीजिए वह बहाव आपको गहरे ध्यान में ले जाएगा। जल का प्रवाह मन के बहाव को नियन्त्रित कर देगा। इसे कहते हैं प्रकृति का चमत्कार।

रहस्यमयी अंदाज है भगवान का

भगवान को हम कितना ही कोसें, उस पर आरोप लगाएं लेकिन हमें जो कुछ मिल रहा है वह उसी की बदौलत है। उसका अंदाज सबसे अलग है। वह कभी किसी को कुछ दिखाकर नहीं देता, बिना बताए दे देता है लेकिन लेने से पहले एहसास भी नहीं होने देता कि वापस ले रहा है। हमारे कर्म देखकर भी भगवान हमसे कुछ लेता या देता है। जैसे हमारे कर्म या भगवान से जैसा हमारा रिश्ता होगा, वैसे ही वह हमारे लिए कुछ देगा। हम दुनिया में इस तरह से रिश्ते निभा रहे हैं वैसे ही दुनिया बनाने वाले भी निभाने लगते हैं और यहीं से गड़बड़ शुरु हो जाती है।

भगवान से हमारा रिश्ता कैसे हो यह सवाल हर भक्त के मन में आता रहता है। क्या हम करें और क्या वो करेगा सवाल के इस झूले में हमारी भक्ति झूलती रहती है। श्रीकृष्ण अवतार में सुदामा प्रसंग इसका उत्तर देता है। सांदीपनि आश्रम में बचपन में श्रीकृष्ण-सुदामा साथ पढ़े थे। बाद में श्रीकृष्ण राजमहल में पहुंच गए और सुदामा गरीब ही रह गए। सुदामा की पत्नी ने दबाव बनाया और सुदामा श्रीकृष्ण से कुछ सहायता लेने के लिहाज से द्वारिका आए। एक मित्र दूसरे मित्र से कैसे व्यवहार करे इसका आदर्श प्रस्तुत किया श्रीकृष्ण ने। खूब सम्मान दिया सुदामा को लेकिन विदा करते समय खाली हाथ भेज दिया। वह तो बाद में अपने गांव जाकर सुदामा को पता लगा श्रीकृष्ण ने उनकी सारी दुनिया ही बदल दी। भगवान के लेने और देने के अपने अलग ही तरीके होते हैं। बस हमें इन्हे समझना पड़ता है। वह दिखाकर नहीं देता पर खुलकर देता है।

इस प्रसंग का खास पहलू यह है कि सुदामा ने पूछा था कृष्ण मैं गरीब क्यों रह गया। आपका भक्त होकर भी? श्रीकृष्ण बोले थे बचपन की याद करो, गुरु माता ने एक बार तुम्हे चने दिए थे कि जब जंगल में लकड़ी लेने जाओ तो कृष्ण के साथ बांटकर खा लेना। तुमने वो चने अकेले खा लिए, मेरे हिस्से के भी। जब मैंने पूछा था तो तुम्हारा जवाब था, कुछ खा नहीं रहा हूं बस ठंड से दांत बज रहे हैं। भगवान की घोषणा है जो मेरे हिस्से का खाता है और मुझसे झूठ बोलता है उसे दरिद्र होना पड़ेगा।

मूर्ति पूजा से भी मिल सकती है कामयाबी

अक्सर लोग इस बात की शिकायत करते हैं कि उन्हें बहुत मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिलती। किसी काम को कितना ही मन लगाकर करें, उसमें कोई खामी रह ही जाती है। दरअसल हम कई बार लक्ष्य पर इतनी गहराई से नजर गढ़ा देते हैं कि सफलता के साधन चुनने में गलती हो जाती है। मन में कई तरह के भ्रम और फालतू की बातें घर कर लेती हैं।

मूर्ति पूजा के दौरान अंध विश्वास और विवेक में संतुलन जरूरी है। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के सामने मत्था टेकने से मनौति पूरी हो जाएगी, यह मान लेना अंधविश्वास है। लेकिन इसमें विवेक जुड़ते ही विश्वास नए रूप में सामने आएगा। महत्वपूर्ण यह कि मूर्ति में हम क्या देख रहे और उससे क्या ले रहे हैं। हिन्दुओं ने मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा इसीलिए करवाई, बुद्ध तथा महावीर की मूर्तियां इसीलिए पूजी गई कि पाषाण में हम वो दर्शन कर लें जो हमारे व्यक्तित्व में अधूरा है। यदि विवेक दृष्टि सही है तो हमें जिस संबल की जरूरत है उसके दर्शन पत्थर की प्रतिमा में हो जाएंगे। जीसस कादस्त की बहुत की सुंदर मूर्ति बनाने वाले से किसी ने पूछा आप इतना सुंदर पत्थर कहां से लाए। उस मूर्तिकार का जवाब था मैंने तो उस पत्थर को चुना जो चर्च बनाते समय रिजेक्ट कर दिया गया था।

जिस पत्थर को फालतू समझकर नकारा गया उस बेकार को मैंने संवारा। क्योंकि जीसस की जो छवि उस मूर्तिकार के मन में थी वही उसने पत्थर में देखी। उसमें से बस आसपास का फालतू पत्थर हटाया तो प्रतिमा बाहर निकल आई। ऐसे ही जीवन में कई फालतू बातों को हम आसपास कर लेते हैं, उन्हें हटाया तो जो सार्थक है वह सामने आएगा। इसी भाव से मूर्ति पूजा की जाए तो प्रतिमाएं दिशा निर्देश, आत्मबल और आनंद का कारण बन जाएगी।

किसी के साथ होने वाली घटना का आभास आपको हो ...

हर व्यक्ति के शरीर में दोनों आइब्रोज के मध्य का स्थान तीसरी आंख या आज्ञा चक्र कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार इसीलिए दोनों आइब्रोज के मध्य ही तिलक किया जाता है। उसका कारण भी यही होता है ताकि यह नेत्र जागृत हो सके। जब कोई गुरु अपने शिष्य को दीक्षा देता है तो भी वह इसी तीसरे नेत्र पर अपना अंगूठा रखता है।

ऐसा माना जाता है कि इससे प्रकृति में उपस्थित दिव्य शक्तियां या अन्य किसी भी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जाएं का किसी व्यक्ति में प्रवेश हो जाए इसीलिए सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश का द्वार खुल जाता है। एक सामान्य अभ्यास से कोई भी अपने तीसरे नेत्र को जागृत कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति से किसी काम को करने को मन ही मन कहेंगे तो आप देखेंगे की थोड़े दिनों बाद वह व्यक्ति आपका काम करने को बगैर कहे ही तैयार हो जाएगा।एक सामान्य अभ्यास आप भी यह कर सकते है।

- इसके लिए सुबह जल्दी उठकर शोरगुल ना हो ऐसी जगह पर सीधे बैठकर ध्यान दोनों आइब्रोज के मध्य अपना ध्यान लगाएं ।
- किसी दूर बैठे व्यक्ति का मन मे चितंन करें या दूर तक की छोटी छोटी अवाजों को सुनने की कोशिश करें।
- यह अभ्यास रोज नियमित रूप से चालीस दिन तक करे। चालीस दिन पूर्ण होते ही आपको इस तीसरे नेत्र की शक्ति का धीरे-धीरे आपको आभास होने लगेगा।
- इस दौरान आपको जिस व्यक्ति के संबंध में आप मन ही मन सोच रहे हैं उसके साथ घटने वाली किसी घटना का आभास आपको हो सकता है।
इसके बाद आप देखेंगे की थोड़े दिन में वह व्यक्ति जिसके बारे में आप सोचेंगे वह बिना कहे ही आपका काम करने को तैयार हो जाएगा।

Saturday, October 2, 2010

लक्ष्मी का निवास स्थान

प्राचीन काल से ही देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्यों द्वारा तरह-तरह के प्रयास किए जाते रहे हैं। आज ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे लक्ष्मी अर्थात् धन की आवश्यकता नहीं है। देवी महालक्ष्मी की कृपा किसे प्राप्त होती है इस संबंध में एक प्रसंग बहु प्रचलित है-एक बार श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी के समक्ष महालक्ष्मी प्रकट हुईं। तब देवी रुक्मणी ने महालक्ष्मी से पूछा: देवी आप किन मनुष्यों के यहां निवास करती हैं? किन पर आपकी कृपा सदैव बरसती रहती है?

इन प्रश्नों के उत्तर में देवी महालक्ष्मी ने कहा-

- मैं ऐसे व्यक्तियों के यहां निवास करती हूं, जो सौभाग्यशाली है, निर्भीक, कार्यकुशल, कर्मपरायण, क्रोधरहित, भगवान की पूजा करने वाला, कृतज्ञ, जितेन्द्रिय हो।

- जो मनुष्य धर्मज्ञ, बड़े-बूढ़ों की सेवा में तत्पर, मन को वश में करने वाला, क्षमाशील और सामथ्र्यशाली हैं, उनके यहां निवास करती हूं।

- जो स्त्रियां स्वभावत: सत्यवादिनी तथा पतिव्रता, धार्मिक आचरण करने वाली हैं, जो भगवान में आस्था रखने वाली हैं, उनके यहां मैं निवास करती हूं।

- जो समय का सदुपयोग करते हैं, सदैव दान आदि करते हैं। जिन्हें ब्रह्मचर्य, तपस्या, ज्ञान, गाय, ब्राह्मण तथा गरीब परम प्रिय हैं, ऐसे पुरुषों में मैं निवास करती हूं।

- जो स्त्रियां घर को और बर्तन को शुद्ध तथा स्वच्छ रखने वाली हैं और गायों की सेवा तथा धन-धान्य संग्रह करती हैं, उनके यहां भी मैं सदा निवास करती हूं।

- जो स्त्रियां सत्य बोलने वाली और सौम्य वेश-भूषा धारण करने वाली होती हैं, सदगुणवती, कल्याणमय आचार-विचार वाली होती हैं, ऐसी स्त्रियों के यहां मैं सदा निवास करती हूं।

जिन व्यक्तियों के यहां महालक्ष्मी का निवास होता है वह धर्म, यश और धन से संपन्न होकर सदा प्रसन्न रहता है।

क्या आदमी उड़ सकता है ?...

हर आदमी जीवन में एक बार तो यह कल्पना करता ही है कि काश वह गायब हो सकता या हवा में उड़ सकता। सोचने में यह बात भले ही बच्चों जैसी लगे लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह संभव है। कुछ ऐसी तंत्र सिद्धियां होती हैं जिससे हम आसानी से हवा में उड़ भी सकते हैं, जब इच्छा हो तब गायब भी हो सकते हैं। हालांकि ये सिद्धि पाना इतना आसान नहीं है लेकिन अगर मेहनत की जाए तो इसे पाया भी जा सकता है।

आइए जानते हैं क्या है यह सिद्धि:-

मंत्र विधि

इस सिद्धि के लिए मंत्र साधना सिर्फ शमशान में बुझी हुई चिता पर आसन लगाकर की जाती है। शमशान में जाने से पहले यह भी जरुरी है कि साधक नदी में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद साधक साधना आरंभ कर सकता है। इसकी मंत्रोक्त साधना बहुत कठिन होती है। यह साधना 120 दिनों तक पूर्ण विधि-विधान के साथ रोज लगभग छ: घंटों तक निम्र मंत्र के माध्यम से की जाती है।

मंत्र- ऊं क्षं क्षं क्षं आकाशचारी शून्य शृंग पूर्णत्व क्षं क्षं क्षं फट् स्वाहासाधना के पश्चात घर जाने से पूर्व भी साधक को स्नान करना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि पूरे विधि से इस साधना को संपन्न करने के बाद आकाश से एक पारद गुटिका प्राप्त होती है और उस गुटिका को दाहिनी भुजा पर बांधकर साधक अपनी इच्छा से गायब हो सकेगा और मनचाहे स्थानों पर विचरण कर सकेगा।

सफलता कारक मंत्र

भौतिक संपन्नता का क्षेत्र हो या आध्यात्मिक उन्नति का कामयाबी उसे ही मिलती है जिसमें उसे पाने की योग्यता और क्षमता होती है। बल या शक्ति उस समग्र और सम्मिलित क्षमता को कहते हैं जिसमें तीनों बल यानि धन, ज्ञान और बाहु बल शामिल हो। दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली वही है जो जिसके पास तीनों बलों का पर्याप्त संचय यानि कि संग्रह हो। प्राचीन दुर्लभ शास्त्रों में कुछ ऐसे विलक्षण मंत्र दिये गए हैं जिनको सिद्ध करके आप जिंदगी के हर क्षेत्र में भरपूर कामयाबी प्राप्त कर सकते हैं। ये मंत्र पूरी तरह से ध्वनि विज्ञान के आधार पर कार्य करते हैं:-

- धन बल के लिए: कमलासने विद्महे, विष्णु प्रयाये धीमही, तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- ज्ञान बल के लिए: हंसवाहिनी विद्महे, ज्ञान प्रदानाय धीमही, तन्नौ सरस्वती प्रचोदयात्।
- बाहु बल के लिए: नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमही, तन्नौ नृसिंह प्रचोदयात्।

जप के नियम:
ऊपर वर्णित अचूक मंत्रों का जप प्रारंभ करने से पूर्व कुछ सरल किंतु अनिवार्य नियमों पर एक नजर-- ध्यान रहे की मंत्र जप की सारी सफलता एकाग्रता और श्रद्धा पर निर्भर होती है।- पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पद्मासन में कमर सीधी रख कर बैठें।- तीनों, कोई दो या आवश्यकता के अनुसार मात्र एक मंत्र का जप करने से पूर्व भी अनिवार्यरूप से तिगुनी मात्रा में गायत्री जप अवश्य करें।- यदि ज्ञान बल वृद्धि के मंत्र का एक माला जप करना हो तो उससे पूर्व तीन माला गायत्री मंत्र की माला करना चाहिए। यानि 1:3 का ही हो।- मंत्र जप पूर्व बाहरी एवं आंतरिक पवित्रता के बाद प्रारंभ करें।- ध्यान रहे मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाना चाहिए।

Friday, October 1, 2010

नौ महत्त्वपूर्ण बातें

निम्न बातें गोपनीय रखनी चाहिये -
1. अपनी आयु किसी को नहीं बतानी चाहिये ।
2. अपना धन गोपनीय रखना चाहिये ।
3. घर का रहस्य गोपनीय रखना चाहिये ।
4. गुरुमंत्र गोपनीय रखना चाहिये ।
5. पति-पत्नी का संसार व्यवहार गोपनीय रखना चाहिये ।
6. औषधि क्या खाते है, वो गोपनीय रखना चाहिये ।
7. साधन-भजन गोपनीय रखना चाहिये ।
8. दान गोपनीय रखना चाहिये ।
9. अपना अपमान गोपनीय रखना चाहिये ।

निम्न बातें सबके सामने खुली रखनी चाहिये -
1. ऋण लेने की बात - "मैं इस बैंक से ऋण लूँगा" आदि ।
2. ऋण चुकाने की बात - "मुझे इस व्यक्ति का इतना ऋण चुकाना है ", इससे विश्वसनीयता बढ़ती है ।
3. दान की वास्तु सबको बतानी चाहिये , नहीं तो चोरी मानी जाती है ।
4. विक्रय की वास्तु - "मुझे ये वस्तु इतने मूल्य में बेचनी है", क्या पता कोई ज्यादा मूल्य देने वाला मिल जाए।
5. कन्यादान - "मुझे अपनी कन्या का विवाह इस व्यक्ति से करना है" क्या पता अगर कन्या का अमंगल छुपा है तो प्रकट हो जायेगा ।
6. अध्धयन - "मैं इतना पड़ा हूँ" । इससे लोगों का विश्वास और अपनी सरलता बनी रहेगी ।
7. वृशोत्सर्ग
8. एकांत में किया हुआ पाप ।
9. अनिन्दनीय शुभ कर्म ।

निम्न व्यक्तियों का विरोध ना करें -
1. रसोई बनाने वाला ।
2. शस्त्रधारी से अकेले में विरोध ना करें । "ज्ञानी के हम गुरु है, मुरख के हम दास । उसने दिखाई छड़ी तो हमने जोड़े हाथ ॥"
3. आपके जीवन के गुप्त रहस्य जानने वाले ।
4. अपने बड़े अधिकारी/स्वामी ।
5. मुर्ख व्यक्ति ।
6. सत्तावान
7. धनवान
8. वैद्य
9. कवि/भाट