Saturday, October 9, 2010
दौलतमंद बनाती है ऐसी लक्ष्मी पूजा
इस बार नवरात्रि का आरंभ शुक्रवार से हो रहा है। इस दिन देवी की पूजा महत्व है। शुक्रवार के दिन विशेष रुप से महालक्ष्मी पूजा बहुत ही धन-वैभव देने वाली और दरिद्रता का अंत करने वाली मानी जाती है। पुराणों में भी माता लक्ष्मी को धन, सुख, सफलता और समृद्धि देने वाली बताया गया है।
नवरात्रि में देवी पूजा के विशेष काल में हर भक्त देवी के अनेक रुपों की उपासना के अलावा महालक्ष्मी की पूजा कर अपने व्यवसाय से अधिक धनलाभ, नौकरी में तरक्की और परिवार में आर्थिक समृद्धि की कामना पूरी कर सकता है। जो भक्त नौकरी या व्यवसाय के कारण अधिक समय न दे पाएं उनके लिए यहां बताई जा रही है लक्ष्मी के धनलक्ष्मी रुप की पूजा की सरल विधि। इस विधि से लक्ष्मी पूजा नवरात्रि के नौ रातों के अलावा हर शुक्रवार को कर धन की कामना पूरी कर सकते हैं -
- आलस्य छोड़कर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। क्योंकि माना जाता है कि लक्ष्मी कर्म से प्रसन्न होती है, आलस्य से रुठ जाती है।
- घर के देवालय में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर चावल या अन्न रखकर उस पर जल से भरा मिट्टी का कलश रखें। यह कलश सोने, चांदी, तांबा, पीतल का होने पर भी शुभ होता है।
- इस कलश में एक सिक्का, फूल, अक्षत यानि चावल के दाने, पान के पत्ते और सुपारी डालें।
- कलश को आम के पत्तों के साथ चावल के दाने से भरा एक मिट्टी का दीपक रखकर ढांक दें। जल से भरा कलश विघ्रविनाशक गणेश का आवाहन होता है। क्योंकि वह जल के देवता भी माने जाते हैं।
- चौकी पर कलश के पास हल्दी का कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति और उनकी दायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठाएं।
- पूजा में कलश बांई ओर और दीपक दाईं ओर रखना चाहिए।
- माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
- इसके अलावा सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें।
- इसके बाद माता लक्ष्मी की पंचोपचार यानि धूप, दीप, गंध, फूल से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं।
- आरती के समय घी के पांच दीपक लगाएं। इसके बाद पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ माता लक्ष्मी की आरती करें।
- आरती के बाद जानकारी होने पर श्रीसूक्त का पाठ भी करें।
- अंत में पूजा में हुई किसी भी गलती के लिए माता लक्ष्मी से क्षमा मांगे और उनसे परिवार से हर कलह और दरिद्रता को दूर कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करें।
- आरती के बाद अपने घर के द्वार और आस-पास पूरी नवरात्रि या हर शुक्रवार को दीप जलाएं।
विशेष रुप से नवरात्रि में महालक्ष्मी की ऐसी पूजा परिवार में जरुर सुख-संपन्नता लाती है।
लक्ष्मी मिलती है परिश्रम और पुरुषार्थ से
क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत?
क्या एकांत हमारे जीवन में इतनी बड़ी भूमिका निभाता है? क्यों जरूरी है कभी-कभी एकांत में रहना?
जब भी हम अकेले होते हैं तब हमारी गति बाह्य न होकर आंतरिक होती है। एकांत के क्षणों में मैं से सामना अपने आप हो जाता है।वैसे भी सभी सभ्यताएं इस बात पर जोर देती हैं कि कैसे भी मैं से साक्षात्कार हो जाए। आत्म-साक्षात्कार के लिए एकांत सहायक तत्व है इसीलिए अंतर्मुखी व्यक्ति हमेशा एकांत की तलाश में रहता है।अनगिनत महान आत्माओं ने एकांत में ही अपने आप को पहचान पाया है। यह तो सर्वविदित है कि भीड़ हमेशा ही निर्माण की भूमिका निभाने की बजाय विनाश ज्यादा करती है, इसलिए भीड़ को मूर्खता का प्रतीक माना जाता है। एकांत के कारण फैसले लेना काफी सुविधाजनक होता है।एकांत जीवन के लिए बहुत आवश्यक होता है। इससे हमें अपने अंर्तमन में झांकने का मौका मिलता है और हम अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकते हैं।
Sunday, October 3, 2010
ऐसे पैदा करें खुद में जादुई आकर्षण
जानिए क्या है चमत्कारी जड़ का जादू
धन समृद्धि का वशीकरण करें ऐसे..
मंत्र- ऊँ नमो पद्मावती पद्मनये लक्ष्मी दायिनी वांक्षाभूत प्रेत विंध्यवासिनी सर्व शत्रु संहारिणी दुर्जन मोहिनी ऋद्धि-सिद्धि वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा। ऊँ क्लीं श्रीं पद्मावत्यै नम:।
नियम-
१। मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही संपन्न होना चाहिये।
२। साधना में प्रयुक्त सभी वस्तुएं लाल रंग की हों।
३। साधना २१ दिनों तक लगातार बिना गेप के चालू रहे।
४। २१ दिनों तक घर के सभी सदस्य सूर्योदय से पूर्व उठकर पीपल वृक्ष को जल अर्पित करें।
५. अपने कार्यस्थल पर हमैशा के समय से २१ मिनिट पहले पहुंचकर तांबे के श्रीयंत्र पर लाल फूल अर्पित करें।
लक्ष्मी का स्थाई निवास होगा घर में
तो आइये जाने उन उपायों को-
१। श्रीयंत्र को पूजा स्थान में रखकर उसकी पूजा करें। फिर उसे लाल वस्त्र में लपेटकर अपनी तिजोरी या धन के स्थान पर रख दें।
२। प्रत्येक शनिवार को किसी काले कुत्ते को रोटी खिलाएं।
३। गाय के शुद्ध घी की व्यवस्था करें फिर नो बत्तियों वाला एक दीपक बनाएं।
४। तांबे के सिक्के को लाल रंग के रिबन में बांधकर घर के मुख्य दरवाजे की चोखट से बांध देवें।
५। प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष की जड़ों में रखें।
कैसे निकले कर्ज के जंजाल से
कर्ज निवारण के उपाय:
- शनिवार को ऋणमुक्तेश्वर महादेव का पूजन करें।
- मंगल की भातपूजा, दान, होम और जप करें।
- मंगल एवं बुधवार को कर्ज का लेन-देन न करें।
- लाल, सफेद वस्त्रों का अधिकतम प्रयोग करें।
लक्ष्मी कृपा जीवन में पूर्णता के लिये
शकु्रवार की रात को कांसे या पीतल की थाली में महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। थाली के चापे और गेहूं के आटे के चार दीपक जलाकर रखें। अब सफेद धोती पहनकर उत्तर की ओर मुख करके बैठें और निम्न मंत्र का 51 बार जप करें-
मंत्र: ऊँ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं, ह्रीं ह्रीं फट्।
1। मंत्र जप की रात वहीं जमीन पर सोएं।
2। अगले 51 दिनों तक सूर्योदय से पूर्व उठकर, उस महालक्ष्मी यंत्र को प्रणाम कर, सूर्य को जल चढ़ाएं।
३। इन 51 दिनों में सूर्योदय पूर्व ही उठें अथवा साधना असफल हो जाएगी।
4। प्रतिदिन सुबह-शाम तुलसी के पौधे में दीपक या अगरबत्ती लगाएं।
5। घर का कौना-कौना साफ रखें। मकड़ी जाला बिल्कुल न बनने दें।
6। घर में क्रोध, विवाद और अशांति बिल्कुल न होने दें।
7। घर के सभी सदस्य साफ-सुथरे कपड़े धारण करें।
यदि सारे नियमों का पालन हुआ तो 52 वें दिन से घर में लक्ष्मी प्रवेश को कोई टाल नहीं सकता। 52 वें दिन से ही लक्ष्मी कृपा के स्पष्ट संकेत मिलने लगेंगे।
वो दुनियां का सबसे अनमोल खजाना था
आइये जाने उस खजाने में से क्या-क्या निकला था-
१- हलाहल विष: इसे भगवान शिव ने धारण किया।
२- कामधेनु गाय: ऋषिमुनियों को यज्ञादि कर्मों के लिए दी गई।
३- कौस्तुभ मणी : भगवान विष्णु ने धारण की।
४- अप्सरा रम्भा : इंद्र देव ने प्राप्त की।
५- लक्ष्मी: लक्ष्मी ने स्वयं ही भगवान विष्णु का वरण किया।
६- वारुणी कन्या (हाथ में सुरा लिए हुए) : असुरों ने ग्रहण की।
७- ऐरावत हाथी : इंद्र को प्राप्त हुआ।
८- कल्पवृक्ष : इंद्र ने प्राप्त किया।
९- पंचजन्य शंख :
१०- चंद्रमा :
११- सारंग धनुष :
१२- उच्चेश्रवा घोड़ा : असुर राजा बली को प्राप्त हुआ।
१३- धनवंतरि : अमृत कलश लेकर आए।
१४- अमृत : बुद्धिबल का प्रयोग कर देवताओं ने ग्रहण किया।
वो दुनियां का सबसे अनमोल खजाना था
आइये जाने उस खजाने में से क्या-क्या निकला था-
१- हलाहल विष: इसे भगवान शिव ने धारण किया।
२- कामधेनु गाय: ऋषिमुनियों को यज्ञादि कर्मों के लिए दी गई।
३- कौस्तुभ मणी : भगवान विष्णु ने धारण की।
४- अप्सरा रम्भा : इंद्र देव ने प्राप्त की।
५- लक्ष्मी: लक्ष्मी ने स्वयं ही भगवान विष्णु का वरण किया।
६- वारुणी कन्या (हाथ में सुरा लिए हुए) : असुरों ने ग्रहण की।
७- ऐरावत हाथी : इंद्र को प्राप्त हुआ।
८- कल्पवृक्ष : इंद्र ने प्राप्त किया।
९- पंचजन्य शंख :
१०- चंद्रमा :
११- सारंग धनुष :
१२- उच्चेश्रवा घोड़ा : असुर राजा बली को प्राप्त हुआ।
१३- धनवंतरि : अमृत कलश लेकर आए।
१४- अमृत : बुद्धिबल का प्रयोग कर देवताओं ने ग्रहण किया।
भरोसा करो लेकिन...
उसने कहा मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरे सर में खूंटा ठोक दिया जाए । मैं चाहता हूं मुझे अपने जिन्दगी भर के गुनाहों कि सजा मिल जाए। लोगों ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो था कि मानने को तैयार ही नहीं। उसी दिन उसकी मौत हो गई। उसके आसपास के लोग यही चाहते थे कि बेचारे की आत्मा को किसी तरह शांति मिल जाए इसलिए उन लोगों ने उसके सिर में खूंटा ठोंक दिया। अब उसके शव को शमशान ले जाने की तैयारी होने लगी। इतने मैं अचानक वहां पुलिस आई और उन लोगों से कहा कि आप लाश को नहीं ले जा सकते। सभी लोग स्तब्ध थे। उनमें से एक ने पूछा क्यों तो पुलिस ने कहा क्योंकि ये जो आदमी मरा है इसने चार दिन पहले ही रिपोर्ट लिखवाई थी कि शायद मेरी ही जान पहचान के लोग मेरे हत्या की साजिश कर रहे हैंऔर यदि मेरी अचानक मौत होती है तो इसका जिम्मेदार मेरे सभी जान पहचान वालों को माना जाए। वे सभी लोग सदमें में थे कि उस दुष्ट ने मरते हुए भी अपनी दुष्टता नहीं छोड़ी। आखिर गलती तो उन्ही की थी क्योंकि उन्होंने उस पर भरोसा किया।
चमत्कारी असर है ऊँ की ध्वनि में
धन समृद्धि के पुख्ता इंतजाम होंगे इससे
अक्षय तृतीया की रात्रि को साधक लाल लंगोट पहने। साधक का आसन भी लाल वर्णीय हो। इस आसन पर खड़े होकर निम्र मंत्र का ११ माला जप करे। इस साधना के बाद अगले ५१ दिनों तक हर हाल में सूर्योदय से पूर्व उठकर उगते हुए सूर्यदेव और पीपल के वृक्ष को जल चढाये ।
मंत्र-अघोर लक्ष्मी मम गृहे आगच्छ स्थापय तुष्टय पूर्णत्व देहि देहि फट्।
धन समृद्धि के पुख्ता इंतजाम होंगे इससे आपके घर में।
टोटकों से करें धन-समृद्धि का आकर्षण
- धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी को प्रति एकादशी के दिन नौ बत्तियों वाला शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
- घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर तांबे के सिक्के को लाल रंग के नवीन वस्त्र में बांधने से घर में धन, समृद्धि का आगमन होता है।
- प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पीपल, तुलसी एवं सूर्य देव को जल अर्पित कर सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।- शनिवार के दिन कृष्ण वर्ण के पशुओं को रोटी खिलाएं।
- घर का कोना-कोना साफ रखें और मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं।
- घर आए अतिथि, साधु या याचक को यथा संभव प्रसन्न करके ही विदा करें।
- अपनी ईमानदारी और मेहतन की कमाई का 2 प्रतिशत हिस्सा, जीव-जंतु, प्रकृति, राष्ट्र एवं समाज की भलाई में खर्च करें। यहां पर लगाया धन लाख गुना होकर शीघ्र ही लौट आता है।
धन की बारिश में भीगना है...?
-प्रयोग की विधि:
- दीपावली, अक्षय तृतीया या अन्य किसी भी शुभ दिन, शुभ मुहूर्त में इस प्रयोग को करें।
- स्नानादि से निवृत्त होकर साफ और पवित्र स्थान पर आसन बिछा लें और महालक्ष्मी का चित्र को अपने सामने स्थापित करें।
- महालक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के पश्चात निम्न मंत्र का (11 मालाएं) जप करें:
मंत्र: ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं दारिद्रय विनाशके जगत्प्रसूत्यै नम:।।
- माला कमल के गट्टे की होनी आवश्यक है।
- इस दिन के पश्चात नित्य अपनी इच्छानुसार मंत्र का जप करें।
- 12 लाख मंत्र जप के पश्चात महालक्ष्मी सिद्ध हो जाती हैं और उपासक को अपार धन, समृद्धि, वैभव, यश, सुख और शांति प्राप्त हो जाती है।
इस प्रयोग की सफल शुरूआत के कुछ ही दिनों में व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होना शुरू हो जाती है।- प्रयोग पूरी श्रद्धा और भक्ति से करें। मन में कोई संदेह ना लाएं। यह प्रयोग अचूक है।
2 मिनिट में जानें सफल होंगे या नहीं
पैसा बरसता रहेगा तब तक...
- जब कोई व्यक्ति अकर्मण्य, नास्तिक, वर्णसंकर, कृतघ्न, दुराचारी, क्रूर, चोर तथा गुरुजनों के दोष देखने वाला हो जाता है, तब चाहे वह कितना ही धनी क्यों न हो, जल्दी ही निर्धन हो जाता है।
- जब कोई व्यक्ति मन में दूसरा भाव रखते हैं और ऊपर कुछ और ही दिखाते हैं। उन्हें लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती।
- जब कोई स्त्री अपने घर को साफ और व्यवस्थित नहीं रखती और दूसरों की बुराई आदि करने में लिप्त रहती है। उनके घर से भी लक्ष्मी चली जाती हैं।
- जो स्त्री पति के प्रतिकूल बोलती हैं और दूसरों के घरों में घूमती-फिरती हैं। उन स्त्रियों के घर से लक्ष्मी चली जाती हैं।
- जो व्यक्ति अधार्मिक कार्यों में फंस जाता है। उसे लक्ष्मी त्याग देती है।
महालक्ष्मी की कृपा के लिए यह उपाय करें-
- प्रतिदिन किसी भी शिवलिंग पर पूरी श्रद्धा से जल चढ़ाएं।
- प्रतिदिन शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाएं।
- रोज रात के समय शिवजी के समक्ष दीपक जलाएं।
- अधार्मिक कार्यों से खूद को दूर रखें।
- पीपल पर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा प्रतिदिन करें।
- महालक्ष्मी पति श्री विष्णु का पूजन करें।
स्वर्ग और नर्क क्या है?
ऐसे देगा पैसा आपके दरवाजे पर दस्तक......
- घर के मुख्य दरवाजे पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा।
- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा।
कैसे बढ़ाएं बैंक बैलेंस?
1- जब भी आप बैंक में पैसा जमा करवाएं तो प्रयास करें कि पश्चिम मुखी होकर ही कार्य करें ।
2- मानसिक रूप से निम्न मंत्र का जाप करें- ऊं श्रीं श्रीं श्रीं
3- यदि इससे भी लाभ नहीं हो तो शुक्रवार को तुलसी के पौधे के समक्ष गाय के घी का दीपक जलाएं व ऊपर दिए गए मंत्र का जाप करें इस उपाय से आपके खाते में धन सदैव बढ़ता रहेगा।
क्या करें अगर पैसा नहीं टिकता?
- जब भी आप घर में अनाज पिसवाएं तो उसमे ग्यारह पत्ते तुलसी के साथ ही दो पत्ती केसर डाल कर, उसमें से थोड़े से अनाज को रात को निकालकर मंदिर में रखकर सुबह उस अनाज को सारे अनाज में मिलाकर पिसवा लें। इस प्रयोग से आपकी समस्या का शीघ्र ही समाधान हो जाएगा और घर में भी बरकत रहने लगेगी।
यह है सफलता का पहला सूत्र
प्रतिस्पर्धा के चलते स्वास्थ्य पर ध्यान देना लगभग भूल जाते हैं। अनियमित दिनचर्या और खानपान लगभग हर दूसरे युवा की परेशानी है। हमें सेहतमंद रहने के लिए हनुमानजी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके जीवन में झांके तो सफलता और सेहत दोनों के महत्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। लगातार सक्रिय रहते, परिश्रम करते हुए अपनी स्वयं की देह का ध्यान रखना भी एक योग है। सधी हुई सेहत सफलता के लिए जरूरी है। श्रीहनुमान सेहत के श्रेष्ठï उदाहरण हैं। हनुमानजी के स्वास्थ्य का राज रामायण के सुंदरकांड में लिखा है। सीताजी से मिलने के बाद जब उन्हें भूख लगी तो माताजी से निवेदन किया और सीताजी ने उनसे कहा
देखी बुद्घि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयॅं धरि तात मधुर फल खाहु।।
''हनुमानजी को बुद्घि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा जाओ हे तात श्री रघुनाथजी को हृदय में बसाते हुए मीठे फल खाओ और हनुमानजी ने फल खाए। इसमें संदेश यह है कि मनुष्य को फलाहारी या शाकाहारी होना चाहिए। शाकाहार शरीर को स्वस्थ्य रखता है और श्रीराम को हृदय में रखकर फल खाने का अर्थ है शुद्घ स्वच्छता से भोजन करना। शुद्घ भोजन, स्वच्छ वातावरण में अच्छे भाव से यदि किया जाए तो शरीर पर अनुकूल असर करता है और इसका परिणाम है हनुमानजी जैसी सेहत। महाभारत के समय जब पांडव अपना वनवास काट रहे थे उस समय भीम द्रौपदी के लिए फूल लाने के उद्देश्य से वन में प्रवेश कर गए। उन्हें केले का बगीचा दिखा। भीम की गर्जना सुनकर जंगल के जानवर पशु-पक्षी डरकर इधर-उधर भाग गए। इस वन में हनुमानजी भी रहते थे। वे मार्ग में विश्राम कर रहे थे। भीमसेन ने उन्हें पहचाना नहीं और उनसे उलझ गए तथा जाने के लिए मार्ग मांगने लगे। हनुमानजी ने कहा आप चाहें तो मेरी पूंछ हटाकर जा सकते हैं। भीम को अहंकार था, जैसे ही पूंछ हटाने का प्रयास किया। पूंछ टस से मस नहीं हुई। तब भीम ने पूछा आप कौन हैं और हनुमानजी का परिचय हुआ। भीम का अहंकार जाता रहा। एक युग बीत जाने पर भी हनुमानजी उतने ही स्वस्थ्य और ताकतवर थे।
जिंदगी की रफ्तार को रोकें नहीं
जब तक जीवन में हमेशा चलते रहने का भाव नहीं आएगा, हम जिंदगी के मिजाज को समझ ही नहीं पाएंगे। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि हिन्दू धर्म का नदी से बड़ा गहरा संबंध है। सरिताओं को बड़ा सम्मान दिया गया है भारतीय संस्कृति में। नदी का अर्थ है बहाव। नदियों ने हर धर्म को ताजगी और सुगंध प्रदान की है। नदी के दुरूपयोग और सूखने का अर्थ है मनुष्य की आध्यात्मिक वृति तथा स्थिति पर प्रहार। इतिहासकारों की मानें तो सभी प्रमुख धर्मों और सभ्यताओं की गवाह नदियां रही हैं। भारत जो कभी आर्यावर्त था, ने अपनी पूरी संस्कृति और धर्म को सिंधु-गंगा-यमुना के तट पर ही प्राणवान किया। मिस्त्र की सभ्यता नील नदी के अंचल में पनपी। चीन में हांग-हो का महत्व, पूजनीय स्थिति का है। यूनानियों ने जिसे मेसोपोटामिया के नाम से पुकारा वह क्षेत्र भी जल से घिरा है। संसार के तीन प्रसिद्ध धर्म यहूदी (सियोन), ईसाई और इस्लाम इसी जल क्षेत्र की पैदाईश हैं।इसीलिए जल और धर्म के रिश्तों को अच्छी तरह समझकर सम्मान देना होगा।
नदियों ने भूखंडों को ही नहीं जोड़ा है बल्कि मनुष्यों की धार्मिक भावना को भी एक जैसी शीतलता से भिगोया है। कोई धर्म जब-जब अपने आपको पूर्ण और अलग बताता है तो नदियां कहती हैं हमारे बहाव ने बहुत कुछ एक-दूसरे धर्म में उधार पहुंचाया है, मिलाया है और आदान-प्रदान किया है।हर बदलते वक्त में हर धर्म ने अपना-अपना श्रेष्ठ एक-दूसरे को दिया और लिया है। जो भले लोग हैं उन्होंने इसका सद्पयोग किया और जो बुरे हैं उन्होंने दुरूपयोग किया। नदी और जल से सीखा जाए शुभ को देना। किसी बहती नदी के किनारे बैठ जल पर दृष्टि गड़ा दीजिए वह बहाव आपको गहरे ध्यान में ले जाएगा। जल का प्रवाह मन के बहाव को नियन्त्रित कर देगा। इसे कहते हैं प्रकृति का चमत्कार।
रहस्यमयी अंदाज है भगवान का
भगवान से हमारा रिश्ता कैसे हो यह सवाल हर भक्त के मन में आता रहता है। क्या हम करें और क्या वो करेगा सवाल के इस झूले में हमारी भक्ति झूलती रहती है। श्रीकृष्ण अवतार में सुदामा प्रसंग इसका उत्तर देता है। सांदीपनि आश्रम में बचपन में श्रीकृष्ण-सुदामा साथ पढ़े थे। बाद में श्रीकृष्ण राजमहल में पहुंच गए और सुदामा गरीब ही रह गए। सुदामा की पत्नी ने दबाव बनाया और सुदामा श्रीकृष्ण से कुछ सहायता लेने के लिहाज से द्वारिका आए। एक मित्र दूसरे मित्र से कैसे व्यवहार करे इसका आदर्श प्रस्तुत किया श्रीकृष्ण ने। खूब सम्मान दिया सुदामा को लेकिन विदा करते समय खाली हाथ भेज दिया। वह तो बाद में अपने गांव जाकर सुदामा को पता लगा श्रीकृष्ण ने उनकी सारी दुनिया ही बदल दी। भगवान के लेने और देने के अपने अलग ही तरीके होते हैं। बस हमें इन्हे समझना पड़ता है। वह दिखाकर नहीं देता पर खुलकर देता है।
इस प्रसंग का खास पहलू यह है कि सुदामा ने पूछा था कृष्ण मैं गरीब क्यों रह गया। आपका भक्त होकर भी? श्रीकृष्ण बोले थे बचपन की याद करो, गुरु माता ने एक बार तुम्हे चने दिए थे कि जब जंगल में लकड़ी लेने जाओ तो कृष्ण के साथ बांटकर खा लेना। तुमने वो चने अकेले खा लिए, मेरे हिस्से के भी। जब मैंने पूछा था तो तुम्हारा जवाब था, कुछ खा नहीं रहा हूं बस ठंड से दांत बज रहे हैं। भगवान की घोषणा है जो मेरे हिस्से का खाता है और मुझसे झूठ बोलता है उसे दरिद्र होना पड़ेगा।
मूर्ति पूजा से भी मिल सकती है कामयाबी
मूर्ति पूजा के दौरान अंध विश्वास और विवेक में संतुलन जरूरी है। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के सामने मत्था टेकने से मनौति पूरी हो जाएगी, यह मान लेना अंधविश्वास है। लेकिन इसमें विवेक जुड़ते ही विश्वास नए रूप में सामने आएगा। महत्वपूर्ण यह कि मूर्ति में हम क्या देख रहे और उससे क्या ले रहे हैं। हिन्दुओं ने मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा इसीलिए करवाई, बुद्ध तथा महावीर की मूर्तियां इसीलिए पूजी गई कि पाषाण में हम वो दर्शन कर लें जो हमारे व्यक्तित्व में अधूरा है। यदि विवेक दृष्टि सही है तो हमें जिस संबल की जरूरत है उसके दर्शन पत्थर की प्रतिमा में हो जाएंगे। जीसस कादस्त की बहुत की सुंदर मूर्ति बनाने वाले से किसी ने पूछा आप इतना सुंदर पत्थर कहां से लाए। उस मूर्तिकार का जवाब था मैंने तो उस पत्थर को चुना जो चर्च बनाते समय रिजेक्ट कर दिया गया था।
जिस पत्थर को फालतू समझकर नकारा गया उस बेकार को मैंने संवारा। क्योंकि जीसस की जो छवि उस मूर्तिकार के मन में थी वही उसने पत्थर में देखी। उसमें से बस आसपास का फालतू पत्थर हटाया तो प्रतिमा बाहर निकल आई। ऐसे ही जीवन में कई फालतू बातों को हम आसपास कर लेते हैं, उन्हें हटाया तो जो सार्थक है वह सामने आएगा। इसी भाव से मूर्ति पूजा की जाए तो प्रतिमाएं दिशा निर्देश, आत्मबल और आनंद का कारण बन जाएगी।
किसी के साथ होने वाली घटना का आभास आपको हो ...
ऐसा माना जाता है कि इससे प्रकृति में उपस्थित दिव्य शक्तियां या अन्य किसी भी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जाएं का किसी व्यक्ति में प्रवेश हो जाए इसीलिए सकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश का द्वार खुल जाता है। एक सामान्य अभ्यास से कोई भी अपने तीसरे नेत्र को जागृत कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति से किसी काम को करने को मन ही मन कहेंगे तो आप देखेंगे की थोड़े दिनों बाद वह व्यक्ति आपका काम करने को बगैर कहे ही तैयार हो जाएगा।एक सामान्य अभ्यास आप भी यह कर सकते है।
- इसके लिए सुबह जल्दी उठकर शोरगुल ना हो ऐसी जगह पर सीधे बैठकर ध्यान दोनों आइब्रोज के मध्य अपना ध्यान लगाएं ।
- किसी दूर बैठे व्यक्ति का मन मे चितंन करें या दूर तक की छोटी छोटी अवाजों को सुनने की कोशिश करें।
- यह अभ्यास रोज नियमित रूप से चालीस दिन तक करे। चालीस दिन पूर्ण होते ही आपको इस तीसरे नेत्र की शक्ति का धीरे-धीरे आपको आभास होने लगेगा।
- इस दौरान आपको जिस व्यक्ति के संबंध में आप मन ही मन सोच रहे हैं उसके साथ घटने वाली किसी घटना का आभास आपको हो सकता है।
इसके बाद आप देखेंगे की थोड़े दिन में वह व्यक्ति जिसके बारे में आप सोचेंगे वह बिना कहे ही आपका काम करने को तैयार हो जाएगा।
Saturday, October 2, 2010
लक्ष्मी का निवास स्थान
प्राचीन काल से ही देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्यों द्वारा तरह-तरह के प्रयास किए जाते रहे हैं। आज ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे लक्ष्मी अर्थात् धन की आवश्यकता नहीं है। देवी महालक्ष्मी की कृपा किसे प्राप्त होती है इस संबंध में एक प्रसंग बहु प्रचलित है-एक बार श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी के समक्ष महालक्ष्मी प्रकट हुईं। तब देवी रुक्मणी ने महालक्ष्मी से पूछा: देवी आप किन मनुष्यों के यहां निवास करती हैं? किन पर आपकी कृपा सदैव बरसती रहती है?
इन प्रश्नों के उत्तर में देवी महालक्ष्मी ने कहा-
- मैं ऐसे व्यक्तियों के यहां निवास करती हूं, जो सौभाग्यशाली है, निर्भीक, कार्यकुशल, कर्मपरायण, क्रोधरहित, भगवान की पूजा करने वाला, कृतज्ञ, जितेन्द्रिय हो।
- जो मनुष्य धर्मज्ञ, बड़े-बूढ़ों की सेवा में तत्पर, मन को वश में करने वाला, क्षमाशील और सामथ्र्यशाली हैं, उनके यहां निवास करती हूं।
- जो स्त्रियां स्वभावत: सत्यवादिनी तथा पतिव्रता, धार्मिक आचरण करने वाली हैं, जो भगवान में आस्था रखने वाली हैं, उनके यहां मैं निवास करती हूं।
- जो समय का सदुपयोग करते हैं, सदैव दान आदि करते हैं। जिन्हें ब्रह्मचर्य, तपस्या, ज्ञान, गाय, ब्राह्मण तथा गरीब परम प्रिय हैं, ऐसे पुरुषों में मैं निवास करती हूं।
- जो स्त्रियां घर को और बर्तन को शुद्ध तथा स्वच्छ रखने वाली हैं और गायों की सेवा तथा धन-धान्य संग्रह करती हैं, उनके यहां भी मैं सदा निवास करती हूं।
- जो स्त्रियां सत्य बोलने वाली और सौम्य वेश-भूषा धारण करने वाली होती हैं, सदगुणवती, कल्याणमय आचार-विचार वाली होती हैं, ऐसी स्त्रियों के यहां मैं सदा निवास करती हूं।
जिन व्यक्तियों के यहां महालक्ष्मी का निवास होता है वह धर्म, यश और धन से संपन्न होकर सदा प्रसन्न रहता है।
क्या आदमी उड़ सकता है ?...
हर आदमी जीवन में एक बार तो यह कल्पना करता ही है कि काश वह गायब हो सकता या हवा में उड़ सकता। सोचने में यह बात भले ही बच्चों जैसी लगे लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह संभव है। कुछ ऐसी तंत्र सिद्धियां होती हैं जिससे हम आसानी से हवा में उड़ भी सकते हैं, जब इच्छा हो तब गायब भी हो सकते हैं। हालांकि ये सिद्धि पाना इतना आसान नहीं है लेकिन अगर मेहनत की जाए तो इसे पाया भी जा सकता है।
आइए जानते हैं क्या है यह सिद्धि:-
मंत्र विधि
इस सिद्धि के लिए मंत्र साधना सिर्फ शमशान में बुझी हुई चिता पर आसन लगाकर की जाती है। शमशान में जाने से पहले यह भी जरुरी है कि साधक नदी में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद साधक साधना आरंभ कर सकता है। इसकी मंत्रोक्त साधना बहुत कठिन होती है। यह साधना 120 दिनों तक पूर्ण विधि-विधान के साथ रोज लगभग छ: घंटों तक निम्र मंत्र के माध्यम से की जाती है।
मंत्र- ऊं क्षं क्षं क्षं आकाशचारी शून्य शृंग पूर्णत्व क्षं क्षं क्षं फट् स्वाहासाधना के पश्चात घर जाने से पूर्व भी साधक को स्नान करना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि पूरे विधि से इस साधना को संपन्न करने के बाद आकाश से एक पारद गुटिका प्राप्त होती है और उस गुटिका को दाहिनी भुजा पर बांधकर साधक अपनी इच्छा से गायब हो सकेगा और मनचाहे स्थानों पर विचरण कर सकेगा।
सफलता कारक मंत्र
- धन बल के लिए: कमलासने विद्महे, विष्णु प्रयाये धीमही, तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
- ज्ञान बल के लिए: हंसवाहिनी विद्महे, ज्ञान प्रदानाय धीमही, तन्नौ सरस्वती प्रचोदयात्।
- बाहु बल के लिए: नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमही, तन्नौ नृसिंह प्रचोदयात्।
जप के नियम:
ऊपर वर्णित अचूक मंत्रों का जप प्रारंभ करने से पूर्व कुछ सरल किंतु अनिवार्य नियमों पर एक नजर-- ध्यान रहे की मंत्र जप की सारी सफलता एकाग्रता और श्रद्धा पर निर्भर होती है।- पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पद्मासन में कमर सीधी रख कर बैठें।- तीनों, कोई दो या आवश्यकता के अनुसार मात्र एक मंत्र का जप करने से पूर्व भी अनिवार्यरूप से तिगुनी मात्रा में गायत्री जप अवश्य करें।- यदि ज्ञान बल वृद्धि के मंत्र का एक माला जप करना हो तो उससे पूर्व तीन माला गायत्री मंत्र की माला करना चाहिए। यानि 1:3 का ही हो।- मंत्र जप पूर्व बाहरी एवं आंतरिक पवित्रता के बाद प्रारंभ करें।- ध्यान रहे मंत्र जप सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाना चाहिए।
Friday, October 1, 2010
नौ महत्त्वपूर्ण बातें
1. अपनी आयु किसी को नहीं बतानी चाहिये ।
2. अपना धन गोपनीय रखना चाहिये ।
3. घर का रहस्य गोपनीय रखना चाहिये ।
4. गुरुमंत्र गोपनीय रखना चाहिये ।
5. पति-पत्नी का संसार व्यवहार गोपनीय रखना चाहिये ।
6. औषधि क्या खाते है, वो गोपनीय रखना चाहिये ।
7. साधन-भजन गोपनीय रखना चाहिये ।
8. दान गोपनीय रखना चाहिये ।
9. अपना अपमान गोपनीय रखना चाहिये ।
निम्न बातें सबके सामने खुली रखनी चाहिये -
1. ऋण लेने की बात - "मैं इस बैंक से ऋण लूँगा" आदि ।
2. ऋण चुकाने की बात - "मुझे इस व्यक्ति का इतना ऋण चुकाना है ", इससे विश्वसनीयता बढ़ती है ।
3. दान की वास्तु सबको बतानी चाहिये , नहीं तो चोरी मानी जाती है ।
4. विक्रय की वास्तु - "मुझे ये वस्तु इतने मूल्य में बेचनी है", क्या पता कोई ज्यादा मूल्य देने वाला मिल जाए।
5. कन्यादान - "मुझे अपनी कन्या का विवाह इस व्यक्ति से करना है" क्या पता अगर कन्या का अमंगल छुपा है तो प्रकट हो जायेगा ।
6. अध्धयन - "मैं इतना पड़ा हूँ" । इससे लोगों का विश्वास और अपनी सरलता बनी रहेगी ।
7. वृशोत्सर्ग
8. एकांत में किया हुआ पाप ।
9. अनिन्दनीय शुभ कर्म ।
निम्न व्यक्तियों का विरोध ना करें -
1. रसोई बनाने वाला ।
2. शस्त्रधारी से अकेले में विरोध ना करें । "ज्ञानी के हम गुरु है, मुरख के हम दास । उसने दिखाई छड़ी तो हमने जोड़े हाथ ॥"
3. आपके जीवन के गुप्त रहस्य जानने वाले ।
4. अपने बड़े अधिकारी/स्वामी ।
5. मुर्ख व्यक्ति ।
6. सत्तावान
7. धनवान
8. वैद्य
9. कवि/भाट